धर्म और मोक्ष के बीच का जीवन ही सर्वोच्च और सम्पूर्ण जीवन है


प्रेम से बोलिये -- परमप्रभु परमेश्वर की ऽऽ जय ! परमेश्वर के यहाँ पूर्ति शब्द का कोई स्थान नहीं है । आपको यदि सोचना ही है तो मुक्ति-अमरता सोचिये । आपको यदि सोचना ही है तो यश-कीर्ति सोचिये। आपको सोचना ही है तो परमेश्वर के लक्ष्यभूत जो कार्य है जिसके लिये उसने आपको अपने से जोड़ा है, उस धर्म-धर्मात्मा-धरती के बारे में सोचिये ! सोचना ही है तो जिसके लिये परमेश्वर ने आपको अपने से जोड़ा है-- धरती से असत्य-अधर्म को मिटाने और सत्य-धर्म को लाने के लिये -- उसके बारे में सोचिये ! ये रोटी-कपड़ा-मकान तथा साधन व सम्मान -- यानी पूर्ति पूर्ति पूर्ति के विषय में क्या सोचना है ! यह भी कोई सोचने का विषय है ? ऐसा नहीं हो सकता ! परमेश्वर के यहाँ ऐसा नहीं हो सकता। 

आप मुझसे प्रेम से भी मत बोलिये । बिल्कुल ठन ठन रहिये, लेकिन सत्याभिलाषी रहिये । कोई जरूरी नहीं है कि आप मुझको किसी भी प्रकार का नमन करें, किसी प्रकार का प्रणाम करें, किसी भी प्रकार की मान्यता दें। कोई जरूरी नहीं है । इतना अवश्य चाहिये कि आप मुझे सत्याभिलाषी दिखलायी दें और सत्य की आवाज को बुलन्द करने का साहस आप में हो। भले ही सूली पर ईसा की तरह से क्यों न चले जाना पड़े धर्म के लिये लेकिन सत्य की आवाज बुलन्द करने के विषय में जरा सा भी झुकाव-अभाव दिखाई देगा तो भइया अब प्राप्ति के विधान से वंचित रहेंगे । यह हमारी मजबूरी है । भगवद् ज्ञान की प्राप्ति भगवद् समर्पित-शरणागत भाव से ही सम्भव है । जिज्ञासा-श्रध्दा उसका माध्यम है ।

जीव:-- हम जिस जीव, ईश्वर और परमेश्वर को दिखलायेंगे, हम पाकेट में ले करके नहीं आये हैं । इस प्रकार से हम किस जीव का दर्शन करायेंगे ? हम किस ईश्वर का दर्शन करायेंगे ? हम किस परमेश्वर का दर्शन करायेंगे कोई कागज में फोटो लेकर नहीं आये हैं, कोई मूर्ति लेकर नहीं आये हैं, कोई वस्तु लेकर नहीं आये हैं । ये वही जीव है जो आपके शरीर से क्रियाशील है--उसी जीव को जो आपमें बैठा है, आपके शरीर में बैठा है और देख रहा है, सुन रहा है, बोल रहा है, सोच रहा है, चल रहा है यानी शरीर के माध्यम से सारी क्रियाओं को जो करने-कराने में लगा है उसी जीव का, आप जीव को आपको दिखलाना है। पाकेट में से निकाल करके नहीं । आपके शरीर में जो है उस शरीर वाले को, उसी जीव को जो आपके शरीर में रहते हुए सब कुछ क्रियाशील रूप में होते हुए दिखलाई दे रहा है ।

आत्मा:- हमारा ईश्वर कौन होगा ? हमारी आत्मा कौन होगी ? हमारा ब्रम्ह कौन होगा जिसे दिखाने की बात कर रहे हैं ? जिस तरह से आपकी शरीर जीवित है जीव से, ठीक उसी तरह आपका जीव जीवित है आत्मा-ईश्वर-ब्रम्ह से । उसी आत्मा-ईश्वर-ब्रम्ह का साक्षात्कार आपको कराया जायेगा जिससे आपका जीव जीवित है । सुनेंगे ही नहीं, देखेंगे  भी। मात्र सुनना नहीं है, देखना भी है। देखने में यदि किसी प्रकार का संदेह-शंका हो रहा है कि यह कोई जादू तो नहीं, इसमें कोई सम्मोहन की क्रिया तो नहीं, इसमें कोई अन्यथा मायावी खेल या अन्यथा कोई विधान तो नहीं तो इसके लिये आपको स्पष्टत: प्रमाण मिलेगा । आप जिस सद्ग्रन्थ के मान्यता वाले होंगे, आपके दिल-दिमाग में जिस सद्ग्रन्थ के प्रति मान्यता होगी, जिस किसी महापुरुष-सत्पुरुष के प्रति मान्यता होगी उसी के ग्रन्थ से आपको प्रमाणित किया कराया जायेगा । उसके फार्मूला, उसके सूत्र को, उसके पध्दति-प्रोसेस-प्रक्रिया को, उसके परिणाम को, उसके उपलब्धियों को सब आपको दिखलाया जायेगा । शास्त्र सम्मत है, सद्ग्रन्थों द्वारा समर्थित व स्वीकारोक्ति प्राप्त है, कुछ भी मनमाना नहीं है। वेद से, उपनिषद् से, रामायण से, गीता से, पुराण से, बाइबिल से, कुर्आन से अथवा किसी भी सद्ग्रन्थ से प्रमाणित एवं समर्थित है । थोड़ी देर के लिये आप इसमें से किसी को नहीं मानते हैं तो कोई बात नहीं, आप साइन्स को (विज्ञान को) तो मानते होंगे । तो साइन्स और विज्ञान से ही सही। आप मैथमेटिक्स को मानते होंगे, उसी से सही । आप साहित्य-लिट्रेचर को तो मानते होंगे, उसी से सही। ज्ञान तो किसी भी किताब से दिया जा सकता है । सारे मार्क, सारी त्रिज्यायें ज्ञान रूपी केन्द्र बिन्दु के हैं। सारी त्रिज्याएँ जो भी विषय-वस्तु हैं, ज्ञान रूपी केन्द्र से परिस्फुटित (प्रकट) हुई हैं-- प्रवाहित हुई हैं । इसलिये  आप जिस विषय-वस्तु के होंगे आपको आपकी विषय-वस्तु से इस ज्ञान को दिया जा सकता है । आप किसान हैं, आप अनपढ़ हैं, कोई जरूरी नहीं कि आप गीता, रामायण, वेद, पुराण देखें । आपके किसानी के माध्यम से इस ज्ञान को दिया जायेगा और आप देखेगे कि आपको आपका जीव दिखलाई दे रहा होगा। ये आत्मा-ईश्वर-ब्रम्ह आप देख रहे होंगे और वर्णन कर रहे होंगे, उसके विषय में आप खुद बतला रहे होंगे कि हम ऐसा देख रहे हैं-- हमको इस तरह दिखलाई दे रहा है, हम ये देख रहे हैं । और इतना ही नहीं, आप बोलते जायेगे-- वहाँ टेप होता जायेगा। सब लोग वहाँ जो भाग लेंगे-- रहेंगे, बैठे रहेंगे, परसनल और सेप्रेट कोई क्रिया नहीं आपके लिये सब शास्त्र सम्मत होंगे और जितने उसमें भाग लेने वाले होंगे, उन सब के समक्ष सबकी उपस्थिति में होंगे ।
आत्मा-ईश्वर-ब्रम्ह कारण शरीर है । स्थूल, सूक्ष्म और कारण । उस कारण में कोई रूप नहीं होगा, कोई आकृति नहीं होगी । वह सदा-सर्वदा निराकार होता है । कभी साकार हो ही नहीं सकता । साकार होगा तो वह आत्मा-ईश्वर-ब्रम्ह-शिव शक्ति रह ही नहीं जायेगा। जब भी उसका दर्शन होगा तो ज्योतिर्मय शब्द और शब्द ज्योतिरूप में होगा । तो इसलिये इसको नाम-रूप कह दिया गया । शब्द जो है उसका नाम हो गया और ज्योति उसका रूप हो गया । जब भी आप आत्मा-ईश्वर-ब्रम्ह का दर्शन करेंगे आत्म-ज्योति रूप आत्मा, ब्रम्ह-ज्योति रूप ब्रम्ह-शक्ति, स्वयं ज्योति रूप शिव-शक्ति या दिव्य-ज्योति रूप ईश्वरीय सत्ता-शक्ति या आलिमे नूर-नूरे इलाही-लाइफ लाइट-डिवाइन लाइट -चाँदना- परमप्रकाश रूप दिन रात  के रूप में दर्शन होगा । सहज प्रकाश रूप भगवाना । नहिं तहँ पुन विज्ञान विहाना ॥ ये सारे दर्शन आपको होंगे ।

परमात्मा:-- इस तरह से आप बन्धुओं से कहना है कि वह परमात्मा-परमेश्वर- परमब्रम्ह कौन होगा ? वही होगा । आप दुनिया के किसी भी प्रार्थना को लाइयेगा, किसी भी बन्दना को लाइयेगा, आप किसी भी भजन को लाइयेगा, आप किसी भी प्रेयर को लाइयेगा, उस प्रेयर में परमेश्वर की प्राप्ति और परमेश्वर के विषय में जो भी  वर्णन होगा-- उसी लक्षण वाला परमेश्वर आपको मिलेगा । आपको जो भी प्रेयर-प्रार्थना याद हो, आप जो भी प्रेयर-प्रार्थना ले करके, भजन-कीर्तन ले करके आप उपस्थित होंगे, उसमें परमेश्वर से सम्बन्धित जो भी लक्षण आप जानते होंगे उसी लक्षण वाला परमेश्वर आपको मिलेगा क्योंकि मेरा परमेश्वर पॉकेट में कोई फोटो-मूर्ति नहीं है । मेरा परमेश्वर वही है जो सृष्टि के पूर्व भी था, जिसे सृष्टि के पश्चात् भी रहना है और सारी सृष्टि जिसके अन्दर है । हम आप सभी सहित सारी सृष्टि जिसके अन्दर है । उसी परमेश्वर के प्राप्ति की बात मैं कर रहा हूँ, जिसे आप अजन्मा कहते हैं, जिसे आप अनाम और अरूप कहते और समझते हैं, जिसे आप जन्म-मृत्यु से परे कहते-समझते हैं, जिसे आप सम्पूर्ण सृष्टि की उत्पत्ति-स्थिति और लय का संचालक समझते हैं उसी परमेश्वर के दर्शन की बात कह रहा हूँ । मेरा परमात्मा-परमेश्वर- परमब्रम्ह-खुदा-गॉड-भगवान् कोई अलग-सेप्रेट वस्तु नहीं है । वही है  जिन लक्षणों का आप गाते हैं, जिन लक्षणों को आप पाठ करते हैं, जिन लक्षणों वाला परमेश्वर आपके  रेडियो स्टेशन से प्रारम्भिक समय में  (प्रारम्भ में) भजन-कीर्तन जो सुनाई देता है उसी परमेश्वर की बात कर रहा हूँ । आप पूछेंगे एक बात कि ये कहाँ रहते हैं? कहाँ से लाकर आप लिखलाइयेगा? इनके स्थान को भी थोड़ा संकेत कर दूँ- 
'जीव तो सभी के शरीर में रहता है ।'
'आत्मा-ईश्वर-ब्रम्ह-सोल-नूर-स्पिरिट कुछ अन्दर भी और पूर्णत: बाहर।' हलांकि जब दर्शन होगा तो बोलना बड़ा मुस्किल हो जायेगा कि अन्दर है कि बाहर है । बाहर है कि अन्दर है । बताना मुश्किल हो जायेगा । आप जब दर्शन करेंगे तो देखेंगे कि आप निर्णय नहीं कर पायेंगे कि हम भीतर देख रहे हैं या  बाहर देख रहे हैं । हम बाहर देख रहे हैं कि भीतर देख रहे हैं । देखते हुए भी यह निर्णय नहीं हो पायेगा । क्यों नहीं हो पायेगा? जिस समय आप ईश्वरीय दर्शन में रहेंगे उस समय आपको अपने शरीर का भाव ही नहीं रह जायेगा । उस समय आपकी शरीर ही नहीं दिखलाई देगी । इसलिये भीतर-बाहर का प्रश्न ही खत्म हो जायेगा । यदि आप ईश्वर दर्शन से लौट करके सामान्य शरीर भाव में रहेंगे तब भी यदि आप से पूछा जाय कि आपने भीतर देखा है या बाहर? तो भी आप निर्णय नहीं कर पायेंगे । कुछ लोग कहेंगे कि हमने भीतर तो देखा है ।  कुछ कहेंगे नहीं, भीतर कहाँ देखा है-- बाहर देखा है । तब और भाई कहेंगे--'नहीं  भाई ! कैसे बाहर दिखायी दिया? हमने भीतर देखा है । कोई कहेंगे--नहीं भाई, बाहर दिखाई दिया । तो कहाँ, कैसे बाहर दिखाई दिया? हम तो भीतर देखे हैं । बड़ा मुस्किल हो जायेगा भीतर-बाहर का निर्णय लेना । इसलिये कुछ भीतर भी और बाहर भी है । 
परमेश्वर की जब प्राप्ति होगी, परमेश्वर जो है जब ये घोषणायें किया जा रहा हैं कि 'कण-कण में भगवान है' तो हम कहेंगे कि ''घोर मूर्खतापूर्ण यह अज्ञान है ।'' ऐसे उन महात्माओं को भगवान् की जानकारी ही नहीं है । धरती पर तो भगवान् रहता ही नहीं है, कण-कण में भगवान् कहाँ से आ जायेगा ? धरती पर भगवान नहीं रहता है धरती पर, फिर कण-कण में कहाँ से आ जायेगा ? कुछ लोग कहने  में लगे हैं कि मुझ में भी है, तुझ में भी है। 'मुझमें-तुझमें खडग खम्भ में ।' यानी मेरे में भी भगवान्, तेरे में भी भगवान् । मैं भी भगवान्, तू भी भगवान् । यह जो है यह भ्रामक और मूर्खता पूर्ण ज्ञान मैं भी भगवान्, तू भी भगवान् । यह जो है यह भ्रामक और मूर्खता पूर्ण ज्ञान की पहचान है । यह मिथ्या ज्ञान की पहचान है । क्योंकि सभी शरीरों में भगवान्? पूरे सतयुग में, पूरे भू-मण्डल पर देव लोक में भी एक श्रीविष्णु जी भगवान् के अवतार थे । पूरे त्रेता युग में पूरे भू-मण्डल पर एक श्रीरामचन्द्र जी महाराज भगवान् के अवतार थे और पूरे द्वापर युग में  पूरे भू-मण्डल पर एक श्रीकृष्ण्र जी महाराज भगवान् के अवतार हुए । जो कोई भी मेरे में, तेरे में, सब में, सब के भीतर रहने वाली यह आत्मा ही परमात्मा-भगवान् है--ये जिसकी आवाज है, वे चाहे जो कोई भी हो उसका ज्ञान भ्रामक और मिथ्या है । उनका ज्ञान मिथ्यात्व से भरा है । उनके अन्दर एक मिथ्या महत्वाकांक्षा है जो ऐसा बोलने-कहने में लगे हैं । वास्तविकता यह है कि परमात्मा-परमेश्वर-परमब्रम्ह- खुदा-गॉड-भगवान् धरती पर ही नहीं रहता--धरती पर ही नहीं । आप जब दर्शन करेंगे तो दिखलाई देगा कि सम्पूर्ण ब्रम्हाण्ड ही उसमें है । आपके सहित सम्पूर्ण ब्रम्हाण्ड उसमें है और वह इस ब्रम्हाण्ड से परे है ।
--------- सन्त ज्ञानेश्वर स्वामी सदानन्द जी परमहंस



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