धर्म का आधार और मंजिल दोनों परमात्मा ही है

इलाहाबाद महाकुम्भ 2001 के सत्संग कार्यक्रम से----

आज सभी लोग यहाँ उपस्थित हुए हैं । वैसे तो यहाँ इस महाकुम्भ में हजारों हजार कहना तो शायद ठीक नहीं लग रहा है, यदि बीसियों हजार कहा जाए या इससे भी ऊपर कहा जाए तो शायद हो सकता है कि ऐसा ही हो । उपदेश के लिए ही इतने पंडाल जनमानस के लिए पड़े हैं। हर कोई महात्मन् जनमानस के सुधार के लिए, जीव के कल्याण के लिए, उध्दार के लिए अपने-अपने प्रयास में लगा हुआ है । यहाँ पर विश्व का सबसे बड़ा धर्म मेला (महाकुम्भ) जैसा कि चारों तरफ घोषणाएं हो रही हैं, लगा हुआ है । यह एक ऐसा सुअवसर है आप सबके लिए जिसमें हर किसी को  वास्तव में धर्म क्या है, कर्म क्या है, योग क्या है, ज्ञान क्या है, भक्ति क्या है; सब कुछ जानने के लिए एक से एक महात्मन् , एक से एक उपदेशक आपके इस मेला में उपस्थित हैं। जिसके पास जो कुछ है वह आपके समक्ष रख रहा है  ।


अब रही चीज ये कि आप यहाँ जिस पण्डाल में  बैठे हुए हैं, एक बात आप सब से बता दूँ  कि इस पण्डाल का किसी से कोई  डाह-द्वैष नहीं है ।  किसी की भी आलोचना और निन्दा करने का कोई भाव नहीं हैं । परन्तु इसमें एक बात लेकिन आ रहा है - आड़े आ रहा है । कहने के लिए तो सब कह रहे हैं  कि हम सत्य बोल रहे हैं । हम 'सत्य' कह रहे हैं कि हमारा पण्डाल सत्य का है, सत्य के लिए है । लेकिन अब जहाँ तक सत्य की बात है, अब सत्य बोलने में जो भी असत्य होगा उसका तो कुछ पर्दाफास होगा ही । यदि हम ही असत्य होंगे तो हमारा भी पर्दाफास होगा । यह एक ऐसा मेला है जिसमें चाहे तथाकथित भगवान् जी हों, तथाकथित सद्गुरु जी हों या गुरुजन वृन्द हों; प्राय: हर किसी को जो विश्व में अपना अस्तित्व समझता है, जो अपने को जनमानस में कुछ स्थान वाला समझता है, या मानता है, उसका किसी न किसी प्रकार का पण्डाल यहाँ पड़ा हुआ है ।  एक बात 'सत्य' की जब आती है, 'सत्य' बोलने वाली बात जब आती है तो स्वाभाविक  है कि असत्य बोलने वाले को  बुरा लगेगा  । कब जब वो अपने आप को असत्यमय बना रहना चाहेगा । मान लीजिये कोई भूल-भटक करके अनजानवश असत्य वाला है तो उसको सत्य बुरा नहीं लगेगा । वह तुरन्त अपने को सुधार करके, अपने से असत्य को हटा करके अपने आप को सत्य से जोड़ने-जुड़ने में प्रसन्नता  महसूस करेगा। क्योंकि  धर्म जो है दो-चार-दस-बीस नहीं होता है । 'धर्म' तो एक था, एक है और एकमात्र एक ही रहने वाला है। 'धर्म' में दो के लिये ही स्थान नहीं है, दस-बीस-सौ-पचास-हजार की बात तो बहुत दूर रही । 'धर्म' में तो दो के लिये ही जगह
नहीं है, 'धर्म' तो एक था, एक है और एक ही रहने वाला है । सदा ही एक रहने वाला है । 
अब रही चीज ये वह 'धर्म' क्या है? वास्तव में  जब आप-हम सभी ईमान और सच्चाई से अभिमान-अहंकार रहित हो करके जब 'धर्म' को  जानने, समझने, देखने, परखने चलेंगे तो मिलेगा 'धर्म' वास्तव में परम सत्य पर आधारित है । 'धर्म' का आधार और 'धर्म' का मंजिल दोनों परम सत्य है । दोनों परमात्मा हैं - दोनों परमेश्वर हैं - खुदा-गॉड-भगवान्  हैं । 'धर्म' का आधार भी और 'धर्म' का मंजिल भी, 'धर्म' का प्रारम्भ भी और 'धर्म' की अन्तिम मंजिल भी परम सत्य है। हर किसी को अपने को टटोलना चाहिए - आत्म निरीक्षण करना चाहिए कि हम सत्य पर हैं कि  नहीं, हमारा उपदेश सत्य पर है कि नहीं, हम सत्य वाले ही हैं कि नहीं ।  क्योंकि एक सत्य वाले हम नहीं होंगे  तो फिर  'धर्म' वाले नहीं हो सकते। चाहे हम जितना धार्मिक वेष अपना लें, 'धर्म' के नाम पर जो भी हम उपदेश दे लें, 'धर्म' पर होने-रहने के लिए वास्तविक 'धर्म' की स्थिति में बने रहने के लिए  सत्य पर बना रहना  अनिवार्य है । सत्य का होना-रहना अनिवार्य है । हर कोई अपने विषय में थोड़ा-बहुत जानता है कि हम कितने असत्य और कितने सत्य हैं । 
ये जो पण्डाल हम लोगों का है, जिस पण्डाल से जो इस मेला में या चाहे यत्र-तत्र-सर्वत्र जो प्रचार-प्रसार चल रहा है इसका मुख्य उद्देश्य है जीव, ईश्वर और परमेश्वर की प्राप्ति, बातचीत सहित साक्षात् दर्शन, परिचय-पहचान । अब रही चीज ये कि यदि  कोई ये कहे कि ऐसे कहीं ईश्वर और परमेश्वर का दर्शन होता है ? जीव भी कहीं देखने की चीज है ? ये कोई बकवास है, ये कोई अनर्गल चीज है । अरे कोई जादू-मन्तर होगा, कोई टोना-टोटका होगा, कोई मीस्मरीजम-हिप्नोटीजम होगा । 
जिस-किसी के दिल-दिमाग में ऐसे भाव हों, जिस-किसी के बात-विचार ऐसे हों उनसे एक बार पूछा जाए ऐसा दुनिया में कोई जादूगर, मीस्मराइजर व हिप्नोटाइजर रहा है जो घोषित किया हो कि हम जीव दिखा देंगे ईश्वर-परमेश्वर की बात दूर रही। जादू-मन्तर, मीस्मरीजम-हिप्नोटीजम में क्षमता-शक्ति है जीव दिखाने की ? ईश्वर- परमेश्वर के सम्पर्क में जादू-मन्तर जाएगा ? टोना-टोटका जाएगा ? हम कोई नया ईश्वर-परमेश्वर पॉकेट में रखकर नहीं लाये हैं । हमारा कोई ईश्वर, परमेश्वर अलग से कोई वस्तु नहीं है । ये वही जीव, ईश्वर और परमेश्वर है जिसके विषय में सारे सद्ग्रन्थ  एक रिकॉर्ड के रूप में पड़े हुए हैं । हम तो इस मार्ग के भी नहीं हैं कि हम केवल रामचरित मानस स्वीकार करेंगे, हम केवल गीता स्वीकार  करेंगे, हम केवल पुराण स्वीकार करेंगे, हम केवल उपनिषद् स्वीकार करेंगे, हम केवल बाइबिल स्वीकार करेंगे, हम केवल कुर्आन शरीफ स्वीकार करेंगे। हमारे लिए तो सभी सद्ग्रन्थ एक समान हैं । सद्ग्रन्थ सद्ग्रन्थ हैं । चाहे वो संस्कृत में हों, चाहे वो हिन्दी में हो या अंग्रेजी में हो या किसी भी भाषा में हो; सद्ग्रन्थ तो सद्ग्रन्थ है । यानी भाषा के अलग-अलग हो जाने से ग्रन्थों की महिमा, ग्रन्थों की मर्यादा कम-वेश नहीं हो सकती है । छोटी-बड़ी नहीं हो सकती है । मन्दिर भगवान् जी का है और मस्जिद भगवान् जी का नहीं है ? गिरिजाघर-गुरुद्वारा भगवान् जी का नहीं है ? सब भगवान् जी का है । क्योंकि खुदा-गॉड-भगवान् जी अलग-अलग नहीं हैं ।  जब खुदा-गॉड-भगवान् जी अलग-अलग नहीं हैं  तो चाहे मन्दिर हो, मस्जिद हो, गिरिजाघर हो, पूजाघर, इबादतघर या चाहे प्रेयर हाउस; जो है खुदा-गॉड-भगवान् जी का होता है न ! खुदा-गॉड-भगवान् जी का कहलाएगा न !
महात्मन् बन्धु का जो अपने को और अपने समाज को अभिमान और अहंकार की आड़ में भरमे-भटके और भरमाए-भटकाए रखना चाहते हैं, वे सीधे ऐलान कर देते हैं कि सन्त ज्ञानेश्वर भगवान् को नहीं मानता, ईश्वर-परमेश्वर को नहीं मानता। वो तो किसी ग्रन्थ को नहीं मानता ऐसा सुनने को मिलता है । बड़ा विचित्र लगता है। जो कोई जीव, ईश्वर और परमेश्वर को जाना ही नहींदेखा ही नहीं, किसी शिष्य को जना-दिखा भी नहीं रहा है, वो अपने को धर्मात्मा कह रहा है; वो अपने को ईश्वर-परमेश्वर को  मानने वाला कह रहा है, वो  वेद, उपनिषद्, बाइबिल, कुर्आन को अपने को मानने वाला कह रहा है और हम लोग जो जीव-रूह-सेल्फ को, आत्मा-ईश्वर-ब्रम्ह-नूर- सोल-स्प्रिट को और परमात्मा-परमेश्वर -परमब्रम्ह-खुदा-गॉड- भगवान् को दिखाने की बात करते हैं, दर्शन कराने की बात करते हैं । यह भी नहीं जो दिखा रहे हों उसको आप मान लीजिये । आप जानिये, देखिये, समझिये, परखिये। आप वेद से, उपनिषद् से, पुराण से, रामायण से,बाइबिल से,कुर्आन से, गीता से मानें । किसी भी ग्रन्थ से जिस-किसी भी मान्यता प्राप्त सद्ग्रन्थ में आपकी भावना-सद्भावना जुड़ी हैं आप उसी सद्ग्रन्थ से जाँच कीजिये । जीव का दर्शन-रूह का दर्शन-सेल्फ का दर्शन कराया जाता हैआत्मा-ईश्वर-ब्रम्ह का -- नूर- सोल-स्प्रिट का  दर्शन कराया जाता है और खुदा-गॉड-भगवान् का दर्शन कराया जाता है । वास्तव में यह जीव, आत्मा और परमात्मा -- ये जीव-ईश्वर और परमेश्वर -- ये जीव, ब्रम्ह और परमब्रम्ह सबके ही हैं कि नहीं ? हर प्रकार से सत्य होने पर  ही स्वीकारोक्ति का शर्त हमारे यहाँ है । हम लोग मानने के पक्ष में नहीं हैं ।  मानने की मान्यता की तो हम लोग  एक तरह से कहिये तो आलोचना करते हैं । प्रक्रिया के प्रारम्भ में तो थोड़ी देर के लिये  परिणाम तक पहुँचने के लिए मानना स्वीकार किया जा सकता है । लेकिन परिणाम को मानना कैसे स्वीकार कर लिया जाए ? परिणाम मानने की वस्तु नहीं होता । परिणाम तो जानने की वस्तु है । 
आश्चर्य है कि जो दिखलाने की बात कर रहा है -- जीव, ईश्वर और परमेश्वर का दर्शन कराने की बात कर रहा है; जो सभी सद्ग्रन्थों से प्रामाणिकता की बात कर रहा है, जिसके सारे उध्दरण - सारे प्रमाण सद्ग्रन्थों से आ रहे हैं; उसी को कहा जा रहा है कि ईश्वर, परमेश्वर नहीं मानता है, उसी को कहा  जा रहा है कि ग्रन्थों को नहीं मानता है, जो दिखला रहा है और हजारों-हजार को दिखला चुका है ।
यहाँ पर  82 के कुम्भ में 89 के कुम्भ में कार्यक्रम करके दिखा चुके हैं । पिछले माघ मेला में कार्यक्रम करके यहाँ के लोगों को जना-दिखा चुके हैं । जगह-जगह  इसके 25 वर्ष से केवल दिखाने वाले ही कार्यक्रम चल रहे हैं । जनाने-दिखाने वाले कार्यक्रम में हजारों-हजार लोग भाग लिये। अब तक एक सामने आ करके कहने वाला नहीं मिला कि आपका ये ज्ञान गलत है -- आपके द्वारा दर्शन की बात ये जो कही जा रही है वो गलत है -- वो झूठी है । यह कोई जादू-मन्तर की चीज नहीं है कि देख लो तमाशा और पैसा फेंक दो और चले जाओ; ऐसा नहीं है । हम क्या आपका ले रहे हैं ? एक पैसा फीस भी तो हमने नहीं रखा  है । हमारे यहाँ तो कोई दान-पात्र भी नहीं है, हमारे यहाँ तो दान-चन्दा की कोई व्यवस्था भी नहीं है । कोई मेला वाला नहीं कह सकता है हमारे यहाँ आ करके कि एक रुपया या एक पैसा दिया हो । कोई भी यात्री बाहरी नहीं कह सकता है कि उसका एक पैसा लिया हो या दान-दक्षिणा यहाँ चल-चला रहा हो । फिर हम किस लोभ-लालचवश आपको भरमा रहे हैं ? आखिर आप सबको भरमाने-भटकाने के पीछे हमारा भी तो कोई लोभ-लालच होना चाहिए न ? जब एक पैसा आपका वसूल ही नहीं रहे हैं, हम जहाँ कार्यक्रम करते हैं  किसी की भी  चाय तक नहीं लेते । हाँ, इस संस्था के सब लोग किसी की भी चाय तक लेने के लिये वर्जित हैं । पिला कर आ सकते हैं; पीते नहीं हैं । यदि कोई पी  लेता हो तो हमको लग रहा है कोई नया इस संस्था में प्रवेश किया होगा - नया आया होगा । 
आप बन्धुओं से हम यही कहेंगे कि जीव का दर्शन करना चाहिए, ईश्वर का दर्शन करना चाहिए और खुदा-गॉड-भगवान् का दर्शन करना चाहिए ।  आखिर जीवन का उद्देश्य क्या है ? आप आश्चर्य करते हैं कि वाह ! लोग कहते हैं ''जनम जनम मुनि यतन कराहिं । अन्त राम कहि आवत नाहिं ॥   जनम-जनम यत्न करते रहा, कहते-कहते कितने जनम गुजार देते हैं और राम जी दर्शन देने नहीं आते - मिलने को नहीं आते । यहाँ झट आये 6-7 दिन सत्संग सुने  और पट जो है दो-चार-पाँच दिन में सब दर्शन ही दर्शन हो जाता है । ये कौन सा दर्शन है ! कोई फीस तो नहीं लग रहा है चाहे जैसा भी दर्शन है जाँच के लिये ही सही । जीवन का सारा उमर - सारा समय तो जा ही रहा है भगवान् जी के दर्शन के नाम पर 10-12 दिन और सही । जीवन का सारा समय तो व्यर्थ जा ही रहा है । यदि हम जीव, ईश्वर और परमेश्वर के दर्शन कराने की बात करते हैं, चुनौती देते हैं, सबके सामने ऐसा प्रस्ताव रखते हैं तो कोई इसको जाँच करने के लिए ही सही । यदि गलत बोल रहे हैं  तो हमारा भण्डाफोड़ करने के लिए ही सही । हम गलत बोल रहे हैं, कोई धन्धा कर रहे हैं तो हमारे धन्धा का पर्दाफाश करने के लिय ही सही । लेकिन ईश्वर, परमेश्वर के नाम पर ये 12-13 दिन का समय कौन बड़ा पहाड़ हो गया पाना है परमेश्वर को; करोड़ो-करोड़ों  योनियों के बाद जिसकी सम्भावनाएं आती हैं । करोड़ों-करोड़ों बार जनम और मृत्यु से गुजरने के बाद तो ऐसे चान्सेज सामने आते हैं । ऐसे अनमोल जीवन को हम व्यर्थ में गंवा दिये ? ऐसे अनमोल जीवन को हम व्यर्थ में उड़ा दिये सब जीवन उड़ता चला जा रहा है कोई चिन्तन नहीं है और ईश्वर, परमेश्वर के नाम पर 12-13 दिन चला जायगा-लग जायेगा तो ये बहुत बड़ी चीज हो गयी ? जिन साधु-महात्मन् जनों के धर्म-मर्यादा की रक्षा के लिए  हम लोगों ने अपना जीवन समर्पित किया है,  हम लोगों का मूल उद्देश्य है ''धर्म-धर्मात्मा-धरती की रक्षा ।'' इस पण्डाल का मूल उद्देश्य है ''धर्म-धर्मात्मा-धरती की रक्षा।'' ''धर्म-धर्मात्मा-धरती की रक्षा'' क्योंकि ये कार्यक्रम केवल परमेश्वर का होता है जो   ''धर्म-धर्मात्मा-धरती की रक्षा'' कर सके । ब्रम्हाण्ड में  और किसी में ये क्षमता-शक्ति नहीं है कि ''धर्म-धर्मात्मा-धरती के मर्यादा की रक्षा'' कर सके --- ''धरती की रक्षा'' कर सके । ये सबका एकमात्र रक्षक परमब्रम्ह परमेश्वर होता है - खुदा-गॉड-भगवान् होता है । तो वो जब भू-मण्डल पर अवतरित होता है, अवतरित हो करके अपने इस लक्ष्यभूत कार्य को करता है यानी धर्म की खोयी हुई मर्यादा को पुन: वापस लाना, सद्ग्रन्थों की खोयी हुई मर्यादा को पुन: वापस लाना, धरती की रक्षा करना ये परमेश्वर के अधीन है - ये परमेश्वर के बस की बात है --- ये केवल परमेश्वर कर-करा सकता है और किसी के बस की बात नहीं है । तो अब सवाल उठता है कि ये कार्यक्रम जब केवल परमेश्वर कर सकता है ''धर्म-धर्मात्मा और धारती की रक्षा'' तो आप कौन होते हैं इस कार्यक्रम को करने-कराने वाले ? क्या आप भगवान् बनते हैं अपने को ? आप परमेश्वर बनते हैं क्या ? तो मैं तो बन्धुजनों से एक बात बता दूँ कि आप एक बार अपने से पूछें कि परमात्मा-परमेश्वर-खुदा-गॉड- भगवान्  क्या ये बनने वाला पद होता है क्या ? ये भी बनने-बिगड़ने वाला नाम है   क्या ? परमात्मा- परमेश्वर- परमब्रम्ह-खुदा-गॉड-भगवान्  जो है ये कोई बनने-बिगड़ने वाला नाम है क्या ? ये कोई बनने-बिगड़ने वाला पद है क्या  कि जो चाहे वही बन जायेगा, जो मन करे वही बन जायेगा ? जो जिसको मन में आये वही भगवान् बन जायेगा ? जिसको मन में आये वही परमात्मा-परमेश्वर बन जायेगा ? जिसके मन में आये वही खुदा-गॉड-भगवान् बन जायेगा ? ऐसा ये मनमाना पद है क्या ? भइया एक बात हर किसी को अच्छी तरह से समझ लेना चाहिए कि ब्रम्हाण्ड में यही एक ऐसा पद है जो बना नहीं जा सकता । यही एक ऐसा पद है जिस पर किसी को  बनाया-बिगाड़ा नहीं जा सकता । यह एक ऐसा पद है कि ''सदा-सर्वदा से था, सदा-सर्वदा से है, वर्तमान में भी है और सदा-सर्वदा रहेगा ।'' सृष्टि आयेगी, रहेगी और जायेगी । सृष्टि आती-जाती रहेगी  लेकिन यह एक ऐसा पद है कि सदा-सर्वदा एकरस, एकरूप, अपरिवर्तनशील रूप में बना रहने वाला है ।'' सदा-सर्वदा के लिए एक ही रहने वाला है । तो इस प्रकार से आप बन्धु से हम एक बात बतावें कि जो लोग ये बात सोच करके चल रहे हों कि सन्त ज्ञानेश्वर अपने को भगवान् बनता है उनको बार-बार हम यही कहेंगे कि भगवान् बनने वाला पद नहीं है कि कोई बन जाएगा । जब कोई बन ही नहीं सकता तो सन्त ज्ञानेश्वर कैसे बन  जाएगा ? अब इसके पीछे एक और बात है भगवान् भू-मण्डल पर अवतरित होता है।
ये ग्रन्थ जो हैं एक स्वर से घोषित करते हैं । केवल सनातन धर्म के ही ग्रन्थ नहीं --- केवल रामायण, गीता, पुराण ही नहीं; दुनिया में  निराकार भगवान् घोषित करने वाले --- भगवान् को-खुदा-गॉड-अल्लातआला को बिल्कुल निराकार घोषित करने वाले जो मुस्लिम समाज हैं उनकी एकमात्र जो मुख्य किताब-सद्ग्रन्थ कुर्आन शरीफ है; उस कुर्आन शरीफ में अवतार का बराबर जिक्र है । अजीब आश्चर्य की बात है ऐसा कहाँ, कौन ग्रन्थ है जिसमें अवतार की बात नहीं है ? हर ग्रन्थों में अवतार की बातें हैं ।  आपके पुराण, गीता, रामायण में तो अवतार की बातें हैं ही, बाइबिल और कुर्आन शरीफ में भी अवतार की बातें हैं । भगवान् अवतार लेता है --- पहली बात;  दूसरी   बात कि भगवान् शरीर धारण करता है । भगवान् शरीर मात्र है नहीं, भगवान् कोई शरीर मात्र नहीं होता, भगवान् तो एक सर्वोच्च शक्ति-सत्ता है--भगवान् तो एक परम शक्ति-सत्ता है--भगवान् तो एक परम सत्य है--भगवान् तो एक परम अस्तित्व है--भगवान् तो एक सुप्रिम ऑलमाइटी है--भगवान् तो कादिरे मुतलक हक्क अल्लाहतआला है--वो परमबम्ह परमेश्वर है -- वो सर्वज्ञ और सर्वशक्तिमान है
सवाल उठता है कि समाज में तीन शब्द प्रचलन में हैं --- भगवान् सर्वज्ञ है, सर्वशक्तिमान है और सर्वव्यापक है । जहाँ तक सर्वव्यापक का सवाल है, इस पर लोगों को बहुत बड़ा भ्रम छाया हुआ है । हमारे तथाकथित भगवान् जी लोगों को, तथाकथित सद्गुरुजी लोगों को--गुरु जी लोगों को, सारे के सारे उपदेशक बन्धुओं को इस विषय  पर भ्रम छाया हुआ है । उनको जानने-समझने का प्रयास करना चाहिए कि भगवान् का सर्वव्यापकत्व किस रूप में है? भगवान् का सर्वव्यापकत्व रूप जो है  ऐसा नहीं है कि वो कण-कण में हैऐसा नहीं है कि वो सब में हैऐसा नहीं है कि वो सब जगह है । उसके व्यापकत्व की जो बातें कही गयी हैं वो इस रूप में कि भगवान् सम्पूर्ण ब्रम्हाण्ड को घेर करके स्थित है अर्थात् ये जो ब्रम्हाण्ड है इसमें भगवान् नहीं होता बल्कि यह ब्रम्हाण्ड भगवान् में होता है । यानी ब्रम्हाण्ड में भगवान् नहीं होता केवल अवतार बेला में भगवान् इस ब्रम्हाण्ड में अवतरित होता है - आता है । ''भगवान् उस सर्वोच्च शक्ति-सत्ता का नाम है जिसमें यह ब्रम्हाण्ड रहता   है।'' यह केवल मेरी बात नहीं है ये आपके ऋग्वेद की है, यजुर्वेद की है, ये अथर्व वेद की बात है । यजुर्वेदीय श्वेताश्वतरोपनिषद में भी देखेंगे उसमें भी है गीता में भी है, पुराण में है, बाइबिल में है, कुर्आन में है । किस ग्रन्थ में नहीं है भगवान् ब्रम्हाण्ड में ही नहीं रहता तो फिर सबमें कैसे रहने लगा ? हर कण-कण में कैसे रहने लगा ये बातें कि सबमें भगवान् है, ये बातें कि कण-कण में भगवान् है ये तो अवतार के प्रति घोर अपमान है । ये तो अवतार को सीधे नकारना है, भगवत्ता के अस्तित्तव को, भगवान् के अवतरण  प्रक्रिया को सीधे नकारना है  । और ऐसा सीधे कहा जाए कि  ऐसा कुकर्म कौन कर सकता है ? जो एक अधर्मी होगा । भगवान् के अस्तित्व को जो नकार देंगे तो धर्म कहाँ रह जाएगा ? एक भगवान् के अस्तित्व को नकार दें, ये तो परम सत्य के अस्तित्व को नकारना होगा । भगवान् कोई वस्तु नहीं है, भगवान् कोई व्यक्ति नहीं है, भगवान् कोई शरीर मात्र नहीं है । भगवान् तो एक परम शक्ति-सत्ता है, भगवान् एक परम सत्य है । उस परम सत्य के अस्तित्व को कैसे नकारा जा सकता है ?
राम जी शरीर मात्र भगवान् जी नहीं थे । कृष्ण जी शरीर मात्र भगवान् जी नहीं थे । राम जी वाले शरीर विशेष से वह परम सत्य रूपी जो परम शक्ति-सत्ता है, वह अवतरित हुआ था । कृष्ण जी शरीर विषेष के माध्यम से उस परम सत्य रूपी जो शक्ति-सत्ता है वह अवतरित हुआ था और उन शरीरों के माध्यम से अपने लक्ष्यभूत कार्यों को सम्पादित किया था । ''धर्म-धर्मात्मा-धरती की रक्षा'' रूपी कार्यों को सम्पादित किया था और अपने लीला को सम्पादित किया था । हम आप लोगों से दर्शन की बात कर रहे हैं कि आपको दर्शन करायेंगे -- भगवान् का दर्शन करायेंगे -- विराट दर्शन करायेंगे -- जीव, ईश्वर और परमेश्वर का दर्शन करायेंगे । ये कोई मिथ्या महत्वाकांक्षी बात नहीं है । ये कोई बड़प्पन पाने मात्र के लिए बात नहीं है।ये  बात यथार्थ तत्त्व है, परम सत्य पर आधारित है -- वास्तविक सत्य पर आधारित है और ये कार्यक्रम जो है, पच्चीस वर्ष से चलाते चले आ रहे हैं । पच्चीस वर्ष से लगभग ऊपर हो रहा है इस कार्यक्रम को इसको चलाते हुए । अब तक एक नहीं आया जो यह कह सके आपने जिस ज्ञान को दिया है, आपने जो दर्शन कराया है वह ज्ञान सही नहीं है - दर्शन सही नहीं है । जिसने देखा उसने ज्ञान की सम्पूर्णता को स्वीकार किया । जिसने देखा उसने ज्ञान की सर्वोच्चता-सर्वोत्तमता को स्वीकार किया। ये कोई गुड्डा-गुड्डी का खेल नहीं है, यह परमेश्वर का विधान है । ''तत्त्वज्ञान वह विधान है जिसमें सम्पूर्ण  ब्रम्हाण्ड की सम्पूर्ण चीजें अपने वास्तविक रूप में - मौलिक रूप में दिखाई देती हैं । दुनिया के जितने भी ऋषि-महर्षि, आलिम-औलिया, प्रॉफेट-पैगम्बर जो कोई भी धर्मोपदेशक गुरुजन तथाकथित सद्गुरुजन जो आये हैं धरती पर सबका वास्तविक स्थिति बताने वाला यदि कोई विधान है तो वह 'तत्त्वज्ञान' है ।''
तुलसी क्या थे, कबीर क्या थे, नानक क्या थेदादू, दरिया, पलटू, मोहम्मद साहब, ईसा मसीह, मूसा इस्लाम, दाउद अली इस्लाम यानी जो कोई भी शुक्रात या चाहे  कोई सनक, सनन्दन, सनातन, सनत्कुमार, नारद या पुलह, पुलस्त्य, क्रतु, ऋभु, अंगी, अंगीरस, अथर्वा चाहे याज्ञवल्क्य, वशिष्ठ, भारद्वाज पाराशर, व्यास, तुलसी, बाल्मीकि ये लोग कौन थे ? ये कितने में थे ? विष्णु जी, राम जी, कृष्ण जी  कौन थे ? कितने में थे ? सबकी वास्तविक स्थिति क्षमता सहित-शक्ति सहित यदि देखने-दिखाने की क्षमता-शक्ति किसी में है तो तत्त्वज्ञान में है--भगवद् ज्ञान में है । भगवान् कौन है ? भगवान् कैसा होता है ? भगवान् कितनी क्षमता-शक्ति में होता है, ठीक वैसा का वैसा ही जनाने-दिखाने की यदि किसी चीज में क्षमता-शक्ति है तो केवल ' तत्त्वज्ञान' में है । '' तत्त्वज्ञान वह विधान है जिसमें शिक्षा भी स्थित है, जिसमें स्वाध्याय भी स्थित है और योग-साधना-अध्यात्म भी जिसमें अंशवत् स्थित है । ऐसा कोई विधान ब्रम्हाण्ड में नहीं है जो तत्त्वज्ञान का अंश न हो । ऐसा कोई जानकारी-विधान संसार में (ब्रम्हाण्ड में) नहीं है जिसका अंशी तत्त्वज्ञान न हो - भगवद् ज्ञान न हो । सारे के सारे पण्डाल जीव को ही आत्मा, आत्मा को ही परमात्मा; जीव को ही ईश्वर, ईश्वर को ही परमेश्वर; जीव को ही ब्रम्ह और ब्रम्ह को ही परमब्रम्ह; सेल्फ को ही सोल, सोल को ही गॉड; रूह को ही नूर, नूर को ही अल्लातआला; सब खिचड़ी पका करके एक ही में जोड़ने वाले हैं । उन बन्धुओं से पूछा जाय कि क्या आपने जीव को देखा है ? तो चुप्पी साध करके मुँह नीचे लटका लेंगे । उपदेशक जी हैं -- धर्मात्मा जी हैं -- ज्ञानी जी हैं। ज्ञान दे रहे हैं । किस चीज का ज्ञान दे रहे हैं कि जब जीव को जानते ही नहीं, देखे ही नहीं ? किस चीज का ज्ञान दे रहे हैं जब आत्मा-ईश्वर-ब्रम्ह को जाने ही नहीं, देखे ही नहीं ? किस चीज का ज्ञान दे रहे हैं  जब परमात्मा-परमेश्वर-परमब्रम्ह को जाने ही नहीं, देखे ही नहीं ? हम तो हर तरह से किसी के लिए कह रहे हैं कि जो कोई कहने वाला हो कि मैंने जीव, ईश्वर और परमेश्वर को जाना है, देखा है तो भइया बड़े शिष्टाचार के साथ उनको झूठा ठहराने के लिए, उनको गलत ठहराने के लिए-उनको गलत प्रमाणित करने के लिए हम सहर्ष तैयार हैं । बड़े प्रेम से, सद्ग्रन्थीय मान्यताओं के आधार पर । यदि आवश्यकता पड़ी तो दर्शन करा करके भी । एक पण्डाल नहीं है जिसके गुरु जी अपने जीव तक को कहें कि मैंने देखा है । एक पण्डाल नहीं है जिसके गुरु जी कह सकें कि मैंने अपने को देखा है । अपने जीव को जो मेरा रूप  है 'मैं' है, जो 'हम' है । उस 'हम' जीव को देखें हों । एक गुरु जी इतने बड़े मेला में, विश्व के सबसे बड़े मेला में एक गुरु जी नहीं है- धर्मोपदेशक नहीं है जो कह दे कि हम अपने जीव-रूह को देखे हैं । 
अब रही चीज ये कि एक तरफ कहा जाए कि वाह ! इतने बड़े मण्डलेश्वर-महामण्डलेश्वर और गुरु जी लोग, सद्गुरु जी लोग, भगवान् जी लोग आप सबकी आलोचना कर रहे हैं । सबको नीचा दिखा रहे हैं । ऐसा क्यों कर रहे हैं ? हम कहें कि बन्धुवर ! नीचा दिखाना-आलोचना करना तो तब होगा जब कोई  सही हो और हम उनको गलत कह रहे हों । यदि ये सच्चाई है, ऐसा ही सच है तो आखिर सच बोलने वाला क्या बोले? यदि ऐसा ही सच हो और सच बोलना आपने अपना कर्तव्य समझ लिया हो, संकल्प कर लिया हो कि मुझे सच ही बोलना है, सत्य से अलग हट करके मुझे कुछ नहीं बोलना है और आपके सामने ऐसा ही सब हो तब ये हम और लोगों का आलोचना देखें, और लोगों की शिकायत देखें या अपने सत्य को देखें? 
भइया हमारी तो मजबूरी है सत्य को देखने की  । अब रही बात कि जिसको लग रहा हो कि हम सत्य हैं और हमको झूठा कहा जा रहा है, हमको  नीचा दिखाया जा रहा है तो हम सहर्ष तैयार हैं इस बात को प्रमाणित करने के लिए सद्ग्रन्थों की मान्यता के आधार पर कि जो बोला जा रहा है वो सत्य है । अब आप कह सकते हैं कि वाह ! ये सारे ऋषि-महर्षि, ये सारे सन्त-महात्मन् , ये सारे गुरुजन, तथाकथित सद्गुरुजन ये सारे धर्मोपदेशक  झूठे हैं - गलत हैं और एक आप ही सत्य हैं । मैं कभी किसी से नहीं कहा कि मान लीजिये कि मैं ही सत्य  हूँ । मैंने ये कहाकि जान लीजिये सबको जान लीजिये आपको भी मुझको भी और वास्तव में जो सत्य ही हो उसे ही आप सत्य कहिये । यदि हम भी झूठे दिखायी देने लगें-ये तत्त्वज्ञान झूठा ज्ञान दिखायी देने  लगे तो हम भी झूठ होंगे । और जब हम झूठ हैं तो हम को भी आप झूठ कहिये । चाहे मुझे तीत भी लगे तो, मुझे खराब भी लगे तो, मुझे निन्दा-आलोचना भी लगे तो हम कैसे कह सकते हैं कि आप अपने सत्य को छोड़ दीजिये ? मैं कभी नहीं कहता कि आप मुझे ही सत्य मान लीजिये । लेकिन यह कह रहा हूँ यह जो तत्त्वज्ञान है यही परमसत्य  है ! एकमेव एक यही परमसत्य है !! यही परमसत्य है !!! जिस किसी के पास जो कोई कह रहा है कि हमारे पास तत्त्वज्ञान है, हम तो बड़े प्रेम से कह रहे हैं कि मौका दें। बन्धुओं के समक्ष मौका है, खुले समाज में मौका दें । हम जनाने-दिखाने को तैयार हैं कि जिसको तत्त्वज्ञान कहते हो वह तत्त्वज्ञान नहीं है । और जब  तत्त्वज्ञान नहीं है; और जब तत्त्वज्ञान नहीं है और उसी को तत्त्वज्ञान कहते हैं तो हमको कहना ही पड़ेगा कि ये सब झूठ बोलते हैं ।
हम लोग एक दिन जा रहे थे झूसी के ------- तरफ जो मार्ग है उसका नाम लिखा है तत्त्ववेत्ता मार्ग । बड़ा विचित्र लगा हमको कि इस मार्ग पर कौन तत्त्ववेत्ता है? किस अर्थ में इस मार्ग का नाम तत्त्ववेत्ता मार्ग रख दिया । किसको पता था कि तत्त्ववेत्ता क्या होता है—तत्त्व क्या होता है ? तो अब क्या कहा जाए । अन्धा जब अन्धे को हाथ पकड़ के जब मार्ग दिखाने लगता है तो जिनको मार्ग दिखा रहा है वे जइबे करेंगे गङ्ढा में  दिखाने वाले महोदय भी जाएंगे । वही झूठा गुरु अजगर भया लख चौरासी जाए, चेला सब चींटी भये कि नोंचि-नोंचि के खाय । कि तुम हमारे जीवन को बर्बाद किये हो, तेरे को नोंच-नोंच कर हम खायेंगे । सब गुरुजी लोग बोल रहे हैं -- क्या अजीब स्थिति है कि 'धर्म' जैसी पवित्रतम् चीज को जो सृष्टि  का सबसे पवित्रतम् शब्द है--जो सृष्टि का सबसे पवित्रतम् विधान है--जो परम सत्य का विधान है; इसको भी धन्धा और झूठ-फरेब से युक्त बनाये बिना ये हमारे महात्मन् तथाकथित कहलाने वाले ये गुरुजन जी लोग बाज नहीं आ रहे हैं । क्योंकि बड़ा आसान धन्धा ये लग रहा है, बिना मेहनत  का ही मान-मर्यादा के साथ भोजन, रहन-सहन और एक मान-सम्मान मिल रहा   है । सैकड़ों-हजारों पीछे-पीछे भगवान् कहने में लगे हैं। 
कोई नूर को भगवान् मनवाने में लगा है तो कोई अहं ब्रम्हास्मि को भगवान् मनवाने में लगा है तो कोई आत्मा को भगवान् मनवाने में लगा है तो कोइ ग्रन्थ ही को भगवान् मनवाने में लगा है । धन्यवाद करूँ कि धिक्कार करूँ ऐसे मति-गति वालों को कि भगवान् जानने का कोशिश नहीं किया और ऊल-जलूल उसके सामने जो पड़ गया उसी को भगवान् मानना और कहना-कहलवाना शुरू कर दिया । क्या भगवान् इतना कच्चा सौदा और ऐसा ही है ? भगवान् इतनी ओछी चीज है भगवान् सृष्टि का कर्ता-भर्ता-हर्ता है । भगवान् सृष्टि का एक परम शक्ति-सत्ता है । उसको अपनी ओछी हरकतों से, अपने मिथ्यामहत्वाकांक्षा के शिकार होने के चलते हम भगवान् को भी अपनी ओछी हरकतों का शिकार बनाने लगे । तो क्या भगवान् हमारी ओछी हरकतों का शिकार हो सकता है हम दोपहर के सूरज पर जब थूकने लगेंगे  तो क्या वह थूक सूरज पर जाएगा ? उलट करके अपने मुँह पर आयेगा । आप बन्धुजन इस पण्डाल की चुनौती--इस पण्डाल के ऐलान पर -- इस पण्डाल के उद्धोषणा पर कि यहाँ जीव, ईश्वर और परमेश्वर का साक्षात् दर्शन मिलता है, बातचीत सहित परिचय-पहचान होता है । तुलसी वाले राम जी का नहीं; हनुमान जी वाले राम जी का दर्शन होता है । मीरा वाले कृष्ण जी का नहीं; राधा, गोपियाँ, उध्दव, अर्जुन वाले कृष्ण जी का दर्शन होता है । मूर्ति-फोटो वाले राम जी का नहीं, मूर्ति-फोटो वाले कृष्ण जी का नहीं; जिस भगवान् ने राम जी वाले शरीर से काम किया था - कार्य किया था, जिस भगवान् ने कृष्ण जी वाले शरीर को माध्यम बना करके कार्य सम्पादन किया था उस वास्तविक दर्शन वाले भगवान् जी की बात कर रहे हैं । हमारे ईश्वर, परमेश्वर कोई पॉकेट में रखी हुई वस्तु नहीं है-कोई चीज नहीं है; हमारे ईश्वर-परमेश्वर वही हैं जिनके लिए जंगल-पहाड़-कन्दराओं में जा करके लोग यातनाएं अपने शरीर को दे रहे हैं -- कष्ट सहन कर रहे हैं कि कहीं मुझे ईश्वर का एक झलक मिल जाता। हालांकि उनको यह भी पता नहीं कि ईश्वर ही परमेश्वर नहीं होता है, ईश्वर तो परमेश्वर का एक अंशमात्र है और जीव जो है ईश्वर का अंशमात्र है । 
ये सब धर्मोपदेशक बनने वाले ऊपर  से तो वास्तव में भगवान् वाले और भीतर से घोर नास्तिक, भीतर से अधर्म की वृत्ति से गुजरने वाले ये लोग क्या जानेंगे कि भगवान् क्या होता है, भगवान् किस चीज का नाम है ? यहाँ तो एक धन्धा बना लिया गया भगवान् को, यहाँ तो धर्म एक धन्धा बना लिया गया और सारी दुकानें लगी हैं । ये धन्धा सब खुल रहा है सरकारी कानून में भाई, भारत का संविधान धर्म निरपेक्ष है । भारत का संविधान जो है धर्म निरपेक्ष है । यहाँ की पुलिस कहती है आप अपने पण्डाल में अपना कार्यक्रम कीजिये । दूसरे के पण्डाल में वह कहता हो, चोरी करता हो, ठगाही करता हो, जनता के धन-धर्म का दोहन करता हो; आप करने दीजिये उसको मत छेड़िये । आप अपना कीजिये उसको अपना करने दीजिये। जिस देश में ऐसा कानून और ऐसी पुलिस की व्यवस्था होगी उस देश की क्या स्थिति होगी ? एक नकली इन्सपेक्टर गिरफ्तार कर लिया जाता है, नकली आफिसर गिरफ्तार कर लिया जायेगा, एक नकली चोला पहनने वाला गिरफ्तार कर लिया जायेगा और ये नकली महात्मा-नकली धर्मोपदेशक  जो जनता के धन और धर्म दोनों का शोषण करने में लगे हुए हैं - जो जनता के धन का तो हरण कर ही रहे हैं उसके धर्म का भी हरण कर रहे हैं जनता को भगवान् से विमुख बना करके भगवत् शक्ति-सत्ता से दूर ले जा रहे हैं, सच्ची भक्ति-सेवा से दूर कर रहे हैं; इन लोगों के लिये कोई कानून नहीं है ? इन लोगों के लिये पुलिस संरक्षण दे रही है । वो अपने पण्डाल में कर रहे हैं, करने  दीजिये ।
 ये लोग हॉट प्वाइजन लिये हैं । हॉट प्वाइजन तो राक्षस होते हैं । धर्म के लिये हॉट प्वाइजन तो शैतान होता है । कालनेमि साधु था हनुमान जी को फंसाने के लिये-मारने के लिये । कपटी मुनि साधु था प्रतापभानु को फंसाने के लिये-समाप्त करने के लिये । लेकिन देखने में साधु लग रहा था । प्रतापभानु जैसा प्रतापी राजा भी कपटी मुनि की चाल को नहीं समझ सका । हनुमान जी जैसा बजरंगबली कालनेमि को नहीं समझ सका तो ये नाजानकार-नासमझदार जनता-ये रोटी-कपड़ा-मकान मात्र के लिये लालायित जनता जिसको जल भी शुध्द नहीं मिल पा रहा है पीने का ऐसी तड़पती हुई जनता क्या खोज कर पायेगी इन कपटी मुनि-कालनेमियों को । जो साधु बन करके भगवद् भक्तों को-सच्चे जन को-सच्चे भक्त को सर्वनाश करने में लगे हुये हैं - सत्यानाश करने में लगे हैं । धन केवल  हरण करने में सर्वनाश नहीं हो पाता, धन केवल ठग लेते तो सत्यानाश नहीं कहलाता लेकिन धर्म भी ठग लेना । धन के साथ-साथ जिज्ञासुओं का, भक्तों का धर्म भी हरण कर लेना अपने में भरमा-भटका करके लटकाये रखना ।
 कोई सोऽहँ में लटका रहा है तो कोई में लटका रहा है तो कोई अहँ ब्रम्हास्मि में लटका रहा है तो कोई नाम जप वाले में लटका रहा है । देखिये आशाराम तक भगवान् बनने लगा । उसका बेटा तक भगवान् बनने लगा । सतपाल भी भगवान् बनने लगा उसका बेटा भी भगवान् बनने लगा । एक ही परिवार में सब भगवान् ही भगवान् । हंस भगवान् थे, बालयोगेश्वर जी  भी भगवान् बने, सतपाल भगवान् बना, उसका लड़का भी भगवान् है । ये सब भगवान् ही भगवान्  हुए ? एक ही परिवार में कितने भगवान् जी लोग हैं ? कितने भगवान् होते हैं ?
इस तरह से भइया हम तो कहेंगे कि भगवान् जानना हो तो राम जी के उपदेशों को अपना आधार बनाइये । भगवान् को वास्तव में जाँच-परख करना है तो विष्णु जी का जो ज्ञान का उपदेश है, राम जी का जो ज्ञान का उपदेश है, कृष्ण जी का जो गीता का उपदेश है इसको आधार बनाइये  और इनको आधार बना करके यदि कोई कहता है कि हम भगवान् मिलाते हैं तो उस आधार पर आप भगवान् जानने की कोशिश कीजिये ।  नि:सन्देह भण्डाफोड़ हो जायेगा । पता चल जायेगा कि असली कौन है और नकली कौन है । अब रही चीज ये कि इतने बड़े सन्त-महात्मा, इतने बड़े ऋषि-महर्षि, इतने बड़े महापुरुष को लाखों अनुयायी जिनके हैं उनको आप इस तरह से कह रहे हैं ?

 भइया, ऋषि-महर्षि सतयुग में भी कम नहीं थे, देवी-देवता सतयुग में भी कम नहीं थे । ऋषि-महर्षि त्रेता में भी कम नहीं थे । ऋषि-महर्षि द्वापर में भी कम नहीं थे । विष्णु जी के सिवाय कौन था सतयुग में ? राम जी के सिवाय कौन था त्रेता मेंकृष्ण जी के सिवाय कौन था द्वापर में तत्त्वज्ञान दाता ?
रोटी-कपड़ा-मकान----रोटी-कपड़ा-मकान सारे विश्व की एक समस्या बनी हुई है । बहुतों की तो समस्या इस समय जल हो गया है जल। बतायेंगे इसका इतिहास जब ये सत्संग कार्यक्रम आयेगा तो अंतिम में दो-तीन दिन पहले 20-21 के बाद इसका रहस्य बतायेंगे कि ये पानी जो है उतना महत्वपूर्ण हो गया । आप लोगों के साथ आप लोगों के माता-पिता ने कितना बड़ा घात किया था पैदा होते ही । हर किसी बच्चे के साथ माता-पिता कितना बड़ा घात करते हैं ! कितना बड़ा घात करते हैं !! कितना बड़ा घात करते हैं !!! घोर घात करके भी इसलिये वो क्षम्य हैं कि अनजान में करते हैं । शुरू में तो जान करके किया गया था । लेकिन एक परम्परा बन करके अनजान में वो परम्परा निभते जा रहा है । 20-21 के सत्संग में या 22 के सत्संग में हम ये बात बतायेंगे। 
बोलिये परम प्रभु परमेश्वर की ऽ ऽ ऽ  जय !
कितने बड़े आश्चर्य की बात है कि जब हम दर्शन की बात कर रहे हैं , जब प्रभु से मिला रहे हैं तो इतना आश्चर्य व्यक्त कर रहे हैं कि दर्शन हो जायेगा ! जीव, ईश्वर और परमेश्वर तीनों तीन थे  ! नहीं । तीनों का अलग-अलग दर्शन होता है !! सचमुच दर्शन हो जायेगा !!! हम लोगों को  सुन करके भीतर इतना हँसी आता है। एक तरफ भीतर हँसी आता है और दूसरी तरफ लगता है कि आखिर मनुष्य ये बेचारा किस योनि में है ? मनुष्य योनि में है ? जिसलिये मनुष्य शरीर मिली है - जिसके लिये मानव चोला मिला है कि अपने आप 'जीव' को भी देखे ताकि हम जान सकें कि 'हम' कौन हैं ? जिसके लिये मानव चोला मिला कि ज्ञान प्राप्त करके हम जान-देख सकें कि ये 'हम' कौन है ? 'हमजो  जीव है इसको जान-देख सकें कि 'हम' जीव है । ये जीव क्या है ? ये कैसा है ? कहाँ से आया है ? इस चोले में किसलिये आया है ? आखिर शरीर छोड़कर जाता है तो कहाँ जाता है ? इसको कहाँ जाना   चाहिये ? ये जानने के लिये तो इस जीव को ये मानव चोला मिला । इन जानकारियों के लिये कि 'हम' (जीव) क्या है ? कहाँ से आया है ? कहाँ रहता है ? किसलिये इस चोला में आया था ? क्या जिसलिये आया था वही कर रहा है ? और शरीर छोड़ करके कहाँ चला जाता  है ? 
सर्वप्रथम तो हर किसी का फर्ज है कि वह अपने अपने को (अपने जीव को) जाने।  यदि आप अपने को (अपने जीव को) नहीं जान-देख पा रहे हैं - नहीं जान-समझ पा रहे हैं तो नि:सन्देह सद्ग्रन्थों की मान्यता में आप मनुष्य कहलाने के हकदार नहीं हैं । आप तो नर पशु हैं । यानी नर का चोला तो पाये लेकिन भोग-राग के पीछे दौड़ रहे हैं । आहार-निद्रा-भय-मैथुन के पीछे दौड़ रहे हैं । दिन भर जुटाना शाम-सुबह खाना, सुबह-शाम पखाना। फिर दिन भर जुटाना शाम-सुबह खाना, सुबह-शाम पखाना । सारा दिन इसी में गंवाना । नौकरी वाले हैं तो पहली को पाना, तीस तक खाना और तीसों दिन गुलामी बजाना । पहली को पाना, तीस तक खाना, तीसों दिन गुलामी बजाना और इसी में सारा जीवन गंवाना । जनम-करम-भोग-मरण ---- जनम-करम-भोग-मरण । क्या यही जीवन है ? क्या इसीलिये मानव जीवन मिला था यही मानव जीवन का लक्ष्य है रोटी-कपड़ा-मकान ? यही मानव जीवन का उद्देश्य था रोटी-कपड़ा-मकान ? आप लोगों ने अपने इस अनमोल जीवन को  व्यर्थ कर दिया । मैं भी आपका छोटा भाई हूँ, वृध्दजन हैं तो मैं भी उनका लड़का हूँ। 
आपका लड़का, आपका छोटा भाई एक जानकारी जो भगवान् की तरफ से है,भगवान् की है । आपके बीच रखने चला । आपसे पहले कोई फीस नहीं लेना चाहा, एक पैसा फीस नहीं मांगा । कहे कि हम आपके हैं, आपके लड़के-बच्चे हैं, हम आपके छोटे भाई हैं । हमको भगवान् की तरफ से एक ज्ञान मिला है । आप जानिये। हमने जाना है, देखा है, जांचा-परखा है । इसमें सम्पूर्ण का ज्ञान है, इसमें सम्पूर्ण का भी देखने को मिलता है । इसमें आत्मा-ईश्वर-ब्रम्ह भी जानने-देखने को मिलता है और इसमें परमात्मा-परमेश्वर-परमब्रम्ह भी जानने-देखने को मिलता है । इसमें कागभुसुण्डी जी वाला, कौशल्या जी वाला, यशोदा जी वाला, अर्जुन वाला विराट पुरुष भी देखने को मिलता है । अब एक चीज ये  कि उस ज्ञान को हम आप सबके बीच रख रहे हैं । ये कौन बड़ा अपराध हो गया कि इसका ऊल-जलूल नाम  ऐसा नहीं हो सकता । आपका पैसा भी तो नहीं रखा फीस में कि मैं आपका पैसा ठग लूँगा। एक मुट्ठी अन्न भी तो इसकी फीस में नहीं रखा कि मैं ठग लूँगा । आप कहें कि मेरा 12-13 दिन समय लगे, उसका क्या होगा?
आप आते हैं तो सुनते है और हम आते हैं तो लगातार अन्धाधुन्ध बोलने में लगे हैं । अब आप अपने से पूछें कि भगवान् जी की तरफ से हम आपको कुछ देने में लगे हैं या आपका कुछ लेने में लगे हैं ? उसमें भी हम शर्त लगाये हैं कि हम जो कुछ भी आपको देने में लगे हैं या बताने में लगे हैं। भगवान् की कृपा से भगवान् - ज्ञान के विषय में जो हम जना-दिखा रहे हैं इसमें जो गलत लगे आपको माइक भी दूँगा, आपको कुर्सी भी दूँगा । उस माइक और कुर्सी से उसे गलत काटने का कोशिश करें। भगवत् कृपा होगी तो हम भी सद्ग्रन्थों से -- मान्यता प्राप्त सद्ग्रन्थों से जो आपको जनाने-बताने में लगे हैं उसको सत्य प्रमाणित करने के लिये प्रयास करूँगा, नि:सन्देह ऐसा होगा । फिर आपको  जानने-देखने में परेशानी क्यों हो रही है ? इसलिये कि हमारा घर-परिवार छूट जायेगा ? कहाँ आपका घर-परिवार है ? अरे ! भगवान् जी के लिये भले ही  घर-परिवार नहीं छोड़ेंगे लेकिन यमराज जिस दिन घसीट कर ले जायेगा उस दिन घर-परिवार छूटेगा कि नहीं ? ठीक है भगवान् जी के लिये आप घर-परिवार नहीं छोड़ेंगे, यमदूत-यमराज जिस दिन घसीट कर ले चलेगा उस दिन घर-परिवार छूटेगा कि नहीं ? यमदूत  घसीट कर ले जायेगा तो कोई बात नहीं । छूट रहा है तो छूट जाये । लेकिन खुशी-खुशी भगवान् पाने के लिये, भगवान् का होकर रहने-चलने के लिये हम-आप नहीं करेंगे ऐसा । 
भगवान् एक परम दयालु, परम कृपालु होता है । भगवान् ने ऐसा भी छूट दिया है कि आप पर जो आश्रित हैं, आपके जो सागिर्दय हैं, आपके जो अपने कहलाने वाले हैं आप अपने पीछे उनको भी ले करके भगवान् की राह चल-रह  सकते हैं । क्योंकि उसमें भी एक जीव है, उसको भी मोक्ष की जरूरत है, उसको भी भगवान् की जरूरत है । किसी को भगवान् की जरूरत कब नहीं पड़ती है ? जबकि भगवान् के विषय में उसको कुछ अता ही पता नहीं है । जो कोई भी हो चाहे जितना घोर से घोर नास्तिक भी हो यदि वास्तव में उसके दिल-दिमाग में भगवान् की जानकारी का पता चल जाय  तो ऐसा कोई जीवात्मा नहीं है जो परमात्मा को न चाहे । ऐसा कोई नहीं है जीव जो भगवान् को न चाहे । अब रही चीज ये जो व्यसन में इतना लिप्त हो गया है, भोग-राग में इतना लिप्त हो गया है जैसे एक घोर शराबी को, एक घोर गंजेड़ी को, एक घोर नसेड़ी को शराब, गांजा, नशा छोड़ने को कहा जाय तो उसके लिये विपदा हो जायेगा । उसका पेट दर्द करने लगेगा । उसका सिर दर्द करने लगेगा । उसका शौच ही पखाना नहीं हो पाता है । धिक्कार है ऐसे जीवन को । तुम गुलाम बन गये नशा के । इन साधुजनों को देखिये मार गांजा पर गांजा चढ़ाते हैं सब । किस साधु का गांजा आ गया ? तुम गांजा पीते हो, तुम नशा करते हो । नशाखोरी को छिपाने के लिये कहते हो शंकर जी पिये थे । शंकर जी को देखे हो पीने में ? धिक्कार है उन गृहस्थियों को उन जनमानस को जो ऐसे नसेड़ियों को एक पैसा देते हों या एक मुट्ठा अन्न भी देते हों । जब वो नशा पी रहा है तो वह एक मुट्ठा अन्न का भी पात्र नहीं है । एक नसेड़ी कहीं भक्ति कर सकता है ? एक नसेड़ी, गंजेड़ी, भंगेड़ी से कहीं भक्ति-सेवा हो सकती है भगवान् की ? शराबी, नसेड़ी, गंजेड़ियों को भगवान् भक्ति-सेवा में स्वीकार करेगा ? जनता तो बेचारी भीतर से तड़प रही है प्रदूषित अन्न सेवन करके, प्रदूषित जल सेवन करके, प्रदूषित वातावरण में रह करके-वायु मण्डल में रह करके । प्रदूषित नदियों का जल, प्रदूषित समुद्र का जल, दूषित सारा वातावरण, इसमें रह करके जनता के भीतर की जीवात्मा अफना रही है - तड़फ रही है । उसको चारों तरफ जाने-अनजाने अपने नाश की स्थिति दिखायी दे रही है । कहीं न कहीं  किसी न किसी प्रकार का सहारा खोजता है और उस तड़फन और सहारा का नाजायज लाभ ये तथाकथित धन्धाबाज लोग अपने उठा रहे हैं । जाने-अनजाने उस तड़पन का दुरुपयोग हो रहा है । जानते हैं जीव को भी नहीं और बनते हैं भगवान् जी । जीव को भी नहीं जानते और जनता को देने लगे मोक्ष-कल्याण । जबकि सच्चाई यह है कि मोक्ष-कल्याण सारे ब्रम्हाण्ड में देने का अधिकार केवल भगवान् को है। दूसरा  किसी को मोक्ष देने का अधिकार नहीं । किसी को भी नहीं। आदि शक्ति भी मोक्ष नहीं दे सकती । शंकर, ब्रम्हा और इन्द्र भी मोक्ष नहीं दे सकते। ये तथाकथित  गुरुजन मोक्ष बांट रहे हैं, अमरत्व बांट रहे हैं, मुक्ति-अमरता बांट रहे हैं । 
जब वेद मन्त्र प्रकट हुआ कि 'ऋते ज्ञानान् न मुक्ति: ।' यानी ज्ञान के बिना मुक्ति नहीं । ये जो भागवत् कथा कह रहे हैं । जो भागवत् कथावाचक हैं । जिनका एकमात्र ध्यान दृष्टि जो है चढ़ावा पर है, पैसे पर है । भक्ति में नहीं है । वे मंच पर खूब रोयेंगे, गायेंगे, पब्लिक को हंसायेंगे, रुलायेंगे, लुभायेंगे । ये सारे क्रिया-कलापों के भीतर वास्तविक स्थिति क्या है कि थाल में कितना पैसा चढ़ावा आ रहा है आदि। गिध्द जैसे इन लोगों की स्थिति है गिध्द जैसे । जो भागवत् कथावाचक होंगे ऊँचा ये लोग खूब बोलेंगे । गिध्द कितना ऊँचा उड़ता है । लेकिन उसकी दृष्टि मरे हुए पशु पर होती है । वह इतना ऊँचा उड़ता है आसमान में कि शायद ही कोई पक्षी जाय । एक कबूतर ही है जो उस ऊँचाई को पा सकता है  या पार कर सकता है । लेकिन इतनी ऊँचाई उड़ गया, उसकी दृष्टि कहाँ जाती है ? सड़े-गले उस मांस पर - उस डागर पर - पशु पर। ऐसे ही जब मंच पर बैठते हैं तो इतने बड़े भक्त दिखाई पड़ते हैं । जनमानस के बीच वो अपने को भाव विह्वल  दिखाते हुए   झूमेंगे-गायेंगे-हंसायेंगे-रुलायेंगे । यानी नाटकीय रोल खूब पसंद से करते हैं । सब करने के पीछे ये उनकी भक्ति नहीं है । ये वो वृत्ति है सब करने के पीछे दृष्टि है पैसे पर-रुपये पर ।
तो आप बन्धुजन से हम यही कहेंगे कि ये मेला भगवान् ने इस धरती पर बीच-बीच में धर्म मेला को इसलिये यहाँ स्थापित किया कि बीच-बीच में किसी न किसी प्रकार का विधि-विधान लागू करके ऐसे धार्मिक मेला को घोषित कर-करा दिया कि जो भूले-भटके लोग हैं, जो भूले-बिसरे लोग हैं ऐसे मेला में उपस्थित होंगे। और अपने मिले हुए गुरु से ज्ञान का जांच करेंगे । तो इस तरह से भक्ति को पैसे की दृष्टि से नहीं आंक सकते । धन और भौतिक दृष्टि से 'धर्म' को नहीं आंक सकते। हमारे पास कितने अनुयायी हैं, हमारे पास कितना धन हैकितने आश्रम हैं, कितना विशालकाय प्रचार-प्रसार है ये कभी धर्म की मान्यता नहीं हो सकता । धर्म की मान्यता ज्ञान पर आधारित है ज्ञान पर । ये सब गुरु जी घोषित करते हैं  ये माया है । छोड़ो- त्यागो-फेंको, ये माया है । ये धन-दौलत, घर-गृहस्थी, घर-परिवार छोड़ो-फेंको  और अपने सागिर्द्य में बीबी-बच्चा रख करके बच्चा पैदा कर रहे हैं । वो इनकी लक्ष्मी जी हो गयीं । गृहस्थ लोगों की मां है वो । तो इनके बेटा जी हैं । वो पैदा कर रहे हैं तो वो भगवान् जी हैं और पैदा कर रहे हैं तो माया है । 
उनके पास इतना धन, इतने जन, इतने आश्रम हैं । ये कितना धन हो गया है, कुबेर भण्डारी से भी अधिक ? कहाँ कुबेर को भगवान् के अवतार की मान्यता है ? कितने जन हो गये हैं, क्या देवराज इन्द्र से भी अधिक जो 33 करोड़ देवताओं के राजा हैं। कुबेर भी भगवान् नहीं कहलाये । कितने आश्रम हैं ? कितना निर्माण करा दिया? क्या विश्वकर्मा से अधिक ? ब्रम्हा जी से अधिक ? जिसने सृष्टि रचना ही कर दिया । ऐसी तिलस्मी सृष्टि जिसका थाह नहीं मिलेगा । ये शंकर जी तक, महावीर जी तक इसका थाह नहीं पा सके । ऐसी तिलस्मी दुनिया रचने-रचाने वाले ब्रम्हा जी जो भगवान् जी के सकाश से माया  के द्वारा रचना किया, क्या इन चीजों की रचना से विश्वकर्मा और ब्रम्हा जी भगवान् जी की श्रेणी में हैं ? भगवान् घोषित हैं ? आपके साथ कितने शिष्य चलते हैं, क्या दुर्वाषा से भी अधिक ? थोड़ा सा कड़ाई जोड़ दीजिये न, एक गिलास पानी देने वाला भी इन गुरु जी लोग को  नहीं मिलेगा । एक-एक महात्मा जी लोग ऐसे हैं कि पण्डाल भरा है, अपने बैठे हैं । जब पण्डाल उठने लगेगा तो पता चलेगा कि भण्डारी भी नहीं है । वो भी तनखा पर है, कहीं से आया है । अपना भोजन बनाना हो भण्डारी भी नहीं है । वो भी भाड़े-किराये का है । पण्डाल और मंच पर महात्मा जी । उनके असिस्टेन्ट लोग रुपया का बंटवारा करेंगे जिस दिन पण्डाल उठेगा । उनका परसेन्टेज है । कमीशन है । इतना परसेण्ट आपका, इतना परसेण्ट आपका, इतना परसेण्ट हमारा । अन्तिम में बंटवारा होगा । ऐसे-ऐसे लोग 'मन न रंगाये, रंगाये जोगी कपड़ा । . . . . . . . . . . . . . . . . ये सब ऐसा है । मजबूर कर दिया उदाहरण बनाने के लिये, सज्जनों को ऐसा बोलने के  लिये ।
आप लोग आश्चर्य करते हैं, जो आता है यहाँ आश्चर्य करता है कि जीव, ईश्वर और परमेश्वर तीनों तीन हैं ! जीव, ईश्वर और परमेश्वर तीनों अलग-अलग हैं ? अब सोचिये इतने महात्मा जी लोग  हैं किस बात का उपदेश दे रहे हैं कि अभी आपको इतना भी पता नहीं कि जीव, ईश्वर और परमेश्वर तीनों अलग-अलग होते हैं ? ठीक है नहीं दिखा पाये, नहीं दिखाने की क्षमता-शक्ति है । कम से कम पढ़ करके इतना बताना चाहिये कि ये तीनों अलग-अलग हैं । तीनों तीन हैं । एक ही का तीन नाम नहीं हैं । आखिर ये लोग उपदेश किस बात का दे रहे हैं जब इतना भी ज्ञान नहीं है कि जीव, आत्मा और परमात्मा -- जीव, ईश्वर और परमेश्वर -- जीव, ब्रम्ह और परमब्रम्ह -- रूह-नूर और अल्लाहतआला -- सेल्फ, सोल एण्ड गॉड तीनों तीन हैं और  तीनों अलग-अलग हैं इतनी भी जानकारी नहीं तो किस बात का उपदेश दे रहे हैं ? किस बात का धर्म कर-करा रहे हैं । धर्म में जीव ही 'हमहै  'हम' जब जीव है तो हम इसी को देखने की बात नहीं कर रहे हैं ? हम इसी को देखने-दिखाने की बात  कर रहे हैं तो  ईश्वर, परमेश्वर को हम क्या जनायेंगे-दिखायेंगे । हमको आश्चर्य लगता है कि देखिये न जिसलिये मानव शरीर मिली थी, जिसलिये मानव योनि मिली थी अपने जीव को देखने के लिये, आत्मा-ईश्वर-ब्रम्ह को जानने-देखने के लिये , खुदा-गॉड-भगवान् को जानने-देखने के लिये -- परमात्मा-परमेश्वर- परमब्रम्ह को जानने-देखने के लिये । अपने को बार-बार के ये जन्मना और बार-बार के मरना रूपी इस दु:सह दु:ख से बचाने के लिये इस काल से, इस मृत्यु से अपनी रक्षा करने के लिये मानव शरीर मिला । यही एक शरीर ब्रम्हाण्ड में है, सृष्टि में है जो ज्ञान पाने की पात्रता रखती है  और इस शरीर को हमको ज्ञान को दे देना चाहिये । सबको चाहिये कि इस शरीर को हम ज्ञान को दे दें । 
इस शरीर को कोई माता-पिता को देने में लगा है तो कोई बीबी-बच्चा को देने में लगा है तो कोई बेटा-बेटी को देने में लगा है तो कोई नौकरी-चाकरी, बिजनेस-व्यापार को देने में लगा है । यानी 'ज्ञान' को देने में उनकी मर्यादा घट रही है ?   पता क्या चल रहा है कि कुल क्रिया-कलाप बीबी-बच्चा के लिये हैं । पेट और परिवार उनकी समस्या बनी हुई है । एक नियम बना दिये कि हम दो, हमारे दो । इतनी भी क्षमता-शक्ति नहीं है कि ऐलान कर सकें कि भाई ये तो प्रकृति की देन है, सन्तान भगवान् की देन है । जो आयेगा अपनी व्यवस्था लेकर आयेगा । हमको क्या गर्ज पड़ी है उस प्रकृति के नियम-कानून में बाधा डालने की । अब नसबन्दी होने लगा । पहले ही घोषित हो गया, पहले ही पढ़ाया जा रहा है कि हम इस योग्य नहीं कि परवरिश कर सकें । हिजड़ा बन गये पहले ही नसबन्दी करा करके । भगवान् ने बनाया पुरुष और नसबन्दी करा कर बन गये हिजड़ा ।
तो कुल मिला करके जो है हर किसी को इस वास्तविकता को समझना चाहिये कि आपकी कितनी क्षमता-शक्ति है । आपको पता नहीं है ये जिस शरीर को आप धारण किये हुये हैं । इस शरीर की जानकारी जब खोज करने में लगियेगा, जब खोज करेंगे कि वास्तव में ये शरीर आयी कहाँ से है और किस स्थिति में आयी है । आप अपने पुरुषत्व को देखिये इसकी वास्तविकता का पता चलेगा । ये शरीर परमेश्वर की खुद की शरीर है । मानव शरीर जो है परमेश्वर की निज की शरीर है । यही कारण है कि तब तक चैन नहीं ले सकती है - शान्त नहीं रह सकती है जब तक कि यह परमेश्वर को प्राप्त नहीं कर लेगी । इसका और का दौड़ बना रहेगा । त्रैलोक के विजयी आप सम्राट हो जाइये शान्ति नहीं है और की दौड़ तब भी है । आप देवेन्द्र देवताओं के राजा इन्द्र हो जायेंगे चैन-शान्ति नहीं है । क्योंकि परमेश्वर की शरीर परमेश्वर को प्राप्त करके जब तक परमेश्वर का अपने को नहीं देखेगी कि ये शरीर जो है 'हम' की नहीं, ये हमारी नहीं बल्कि परमेश्वर की है ।  जानने और देखने में जब तक ऐसा नहीं होने लगेगा तब तक  इसको चैन कहाँ ? ऐसा जब दिखायी देने लगेगा  तो एक बार अपने से तो पूछिये कि शरीर अभाव, कमी से ग्रस्त कब है ? रोटी-कपड़ा-मकान शरीर की समस्या कब है ? जब इसको 'हम' कह रहे हैं, हमार कह करके घोषित किये हुये हैं । यही घोर झूठ है । ये शरीर हमार है, शरीर 'हम' की है यही अज्ञानता है, यही भ्रम है, यही झूठ है । यही सब अज्ञानता की जड़ है । शरीर हमार है, शरीर 'हम' की है और ये घर-परिवार हमार है । यही सब पाप-कुकर्म कराने वाला है । जब तक आप इसके वास्तविकता को नहीं जान लेंगे कि ये शरीर तो हम-हमार की है ही नहीं । ये शरीर तो हमार है ही नहीं, ये शरीर तो 'हम' की है ही नहीं । 'हम' तो अपने आप में सही नहीं  है । 'हम' भी अपने आप में वास्तविक नहीं है । यह भी इस झूठी दुनिया का झूठी माया का  एक थपेड़ा झेला हुआ  बेचारा चैतन्य आत्मा है । माया के थपेड़ा में पड़ा हुआ माया के झमेल में फंसा हुआ बेचारा एक आत्मा है । 
जब तक परमात्मा के क्षेत्र में था तब तक माया का कुछ प्रभाव नहीं पड़ा । जब तक परमात्मामय भाव था-परमेश्वरमय भाव था, परमेश्वरमय स्थिति थी तब तक कोई प्रभाव इस पर माया का नहीं पड़ा । लेकिन किसी भी परिस्थिति वश परमेश्वर के क्षेत्र से जब बिलग किया और परमेश्वर के क्षेत्र से विलग होने का मतलब माया का क्षेत्र शुरू हो जाना। तो माया ने सबसे पहले इस चैतन्य तेज को ही समेट लिया, दोष-गुण से आवृत्त कर दिया और दोष-गुण से आवृत्त करके इनके तेज को सूक्ष्माकृति में बदल दिया और उस सूक्ष्माकृति में बदल करके न वही अपना खेल खेल रही है । आपको यह भी मालूम नहीं कि माया हमसे खेल रही है, माया हमको नचा रही है । जब तक हम मायाधीन हैं, जब तक हम अज्ञानता के शिकार हैं, जब तक हम भ्रम के शिकार हैं; तब तक ही ये शरीर हमार है और ये घर-परिवार हमार है । जिस समय वास्तविक ज्ञान आपको मिलेगा । जिस समय सच्ची जानकारी आपको मिलेगी उस समय दिखलायी देने लगेगा कि ये शरीर, घर-परिवार हमारा कुछ तो है ही नहीं । ये हमार भी नहीं है । ये 'हम' की भी नहीं है । क्रमश: देखते-देखते चलेंगे अन्त में जब दर्शन की बारी आयेगी । जीव , ईश्वर और परमेश्वर के जब दर्शन की बारी आयेगी; उस समय दिखलायी देगा कि ये शरीर सहित सारा ब्रम्हाण्ड परमेश्वर  का था, परमेश्वर का है और अन्तत: परमेश्वर का ही यह हो-रह करके रह सकता है । जब परमेश्वर से विलग रहेंगे माया अपना माया जाल ढील करके आपको जो है अपने जाल में फंसा करके आपको जीव बना करके नचाना शुरू कर देगी और आप नाचने के लिये मजबूर होना-रहना-चलना शुरू कर देंगे । बोलिये परम प्रभु परमेश्वर की ऽ ऽ ऽ  जय !
आप सबको  जनाना चाहे लेकिन लाइन दूसरी तरफ बढ़ कर चला जा रहा था। हम जनाना ये चाहे कि बड़ा आश्चर्य है, गजब का आश्चर्य है गजब का आश्चर्य है आप सब आश्चर्य व्यक्त करते हैं  कि जीव का दर्शन, ईश्वर का दर्शन, परमेश्वर का दर्शन मिलेगा ! दर्शन में आ सकता है ! आप सब आश्चर्य कर रहे हैं हम कैसे इसको समझावें कि आप से बढ़कर आश्चर्य तो हमको हुआ है । जितना बड़ा आश्चर्य  आप सबको दर्शन शब्द को लेकर हो रहा है । जीव एवं ईश्वर और परमेश्वर के दर्शन को  ले करके जितना आश्चर्य आपको है  उससे बड़ा आश्चर्य तो आप सब पर हमको हो रहा     है । किस बात को लेकर भाई। इस बात को लेकर कि देखिये न  जिस ईश्वर, परमेश्वर के दर्शन में बने रहने के लिये ये शरीर मिली है । जिसके लिये ही ये मानव योनि मिली है  आज वो मानव शरीर पाकर के भी अभीष्ट और अभीष्ट मंजिल पर ही आश्चर्य कर रहा है । बड़ी विचित्र बात है भाई ! आप कैसे मनुष्य शरीर हैं ? ये कैसे मानव हैं ? जिसलिये आपको मानव की शरीर मिली है कि लो लो यही एकमात्र ज्ञान का पात्र है । यही शरीर जीवन एक ऐसा शरीर जीवन है कि जो जीव को भी जानने-पहचानने-देखने की क्षमता रखता है, आत्मा-ईश्वर-ब्रम्ह को भी जानने-देखने की क्षमता-शक्ति रखता है और परमात्मा-परमेश्वर-परमब्रम्ह को भी जानने-देखने-पहचानने की क्षमता-शक्ति रखता है ।  यानी ज्ञान को पाने की क्षमता-शक्ति रखता है । ये क्षमता-शक्ति केवल एक मानव योनि में है । और आश्चर्य है कि जिसकी ये मशीन है मानव शरीर उस जीव, ईश्वर और परमेश्वर के दर्शन के लिये, जिस मुक्ति-अमरता को पाने के लिये ये मानव योनि मिली है । ये जन्म-जन्मान्तर का भोगी जीव जो है इस मानव योनि पर ही संदेह करने लगा । इस मानव योनि के मंजिल-उद्देश्य पर ही संदेह करने लगा । ये आश्चर्य की बात है कि नहीं ?
हम देख रहे हैं कि पम्पिंग सेट लगा है - पानी का मशीन लगा है । अब कह रहे हैं कि वाह ! ये पम्पिंग सेट पानी निकाल सकता है अरे भइया ! पम्पिंग सेट है चलता है । इसकी परिभाषा जानो, पम्पिंग सेट होता ही इसलिये है कि वह पानी दे और खेतों की सिंचाई हो, जल की आवश्यकताओं की पूर्ति हो । गाड़ी देख रहे हैं । अरे ! ये तो गाड़ी डगर रही है - गाड़ी चल रही है । गाड़ी को ड्राइवर चला कर ले जा रहा है । लो, अब गाड़ी तो चलने के लिये ही बनी है कि गाड़ी पर बैठकर ड्राइवर मंजिल तक ले जाय । गाड़ी का चलना देख कर आप आश्चर्य में पड़ गये । अरे ! गाड़ी तो चलती है । अब लगेंगे व्याकरणाचार्य जी महोदय लोगों की तरह से अर्थ-व्याख्या करने । गाड़ी माने गड़ी हुई । तो जो चल रही है वह गाड़ी कैसे हो सकती है हो ही नहीं सकती । नाम है गाड़ी यानी गड़ी हुई, तो कैसे चल सकती है ? मैं नहीं मान सकता  कि गाड़ी चलती है । बड़ी विचित्र बात है । सबसे रंगीन फल, दूर से ही आपको दिखायी देगा । उसका नाम है नारंगी । नारंगी - रंग ही नहीं है । सबसे तेज रंग है नाम है नारंगी । अब व्याकरणाचार्य जी उसका सही अर्थ व्याकरण से बतायेंगे। क्या करेंगे ? नारंगी -- जिसमें रंग न हो, ऐसा फल जिसमें रंग न हो। ये तो नारंगी हो ही नहीं सकता । ये तो नाम है, ये तो दूसरा दिखायी दे रहा है नारंगी । ये तो व्याकरणाचार्य जी लोगों का व्याकरण हो गया है । ये तो बी0 0, एम0 0, पी0एच0डी0 डिग्री लिये हैं । वेद पर डिग्री-डिप्लोमा ले रहे हैं । पता अपने जीव का भी नहीं । अरे ! अपना ये जीवन उस पढ़ाई में नाश को ले जा रहे हैं । वेद के जो विष्णु मन्त्र हैं, विष्णु सत्य है, जो भगवान् का शब्द है तोड़-ताड़ करके व्याकरण से उसका अर्थ का अनर्थ करके विधि है उसको भी नकार देते हैं । 
ऐसे लोग जो सत्संग में देर करके आ रहे हैं, इस तरह आने मात्र से ज्ञान का प्रैक्टिकल नहीं मिलेगा ।  एक बात आप लोग जान लीजिये । इस समय आप लोग मनमाना हैं । मन करे आइये, मन करे मत आइये। मन करे समय से आइये, मन करे देर करके आइये । आज तो आप अपने-अपने मन के मालिक हैं । जैसे मन करे वैसे रहिये । लेकिन ये मनमाना रहना-चलना 25-26 को भारी पड़ेगा जब इण्टरव्यू में छंटने लगेंगे । देर से आने वाले लोग इण्टरव्यू में छंटने लगेंगे तो उस समय समझ में आयेगा । उस समय पता चलेगा कि सत्संग में मनमाना रहने-चलने का परिणाम क्या होगा ? एक बात ध्यान दीजिये कि ईश्वर, परमेश्वर को कोई धोखा दे नहीं सकता ।    धोखा तो उसको मिलता है जो किसी को धोखा देता है । परमेश्वर किसी को धोखा देता ही नहीं तो उसको  धोखा मिलेगा कैसे ? इसलिये भइया आप लोग चाहें कि  हम परमेश्वर को धोखा दे देंगे । परमेश्वर को अपनी चालबाजी का पाठ पढ़ा लेंगे ? परमेश्वर को धोखा दे देंगे ? भइया ऐसा सम्भव है ही नहीं । यह आप लोगों का भूल है । कम से कम वे लोग जिनको ईश्वर, परमेश्वर के दर्शन की लालसा हो, जिनके अन्दर जीव, ईश्वर और परमेश्वर के दर्शन की जिज्ञासा हो उनको पौने ग्यारह बजे तक यहाँ दाखिल होना  ही पड़ेगा ।  क्योंकि जिस प्रकार से आज ग्यारह बजे के दो एक मिनट पहले ही आये हैं वैसे ही हम ग्यारह बजे के पहले ही आने का कोशिश करेंगे और ऐसा ही होगा । ठीक समय से लोग आने का कोशिश करेंगे। कम से कम बड़े बुजुर्ग जो दर्शन की लालसा वाले हैं, दर्शन की जिज्ञासा वाले हैं उनको समय से उपस्थित होना अनिवार्य है। क्योंकि जब इण्टरव्यू में पूछा जायेगा तो आप लोग सीधे छंट जायेंगे । आप लोग सिध्दान्त को नहीं जानेंगे आप विषय-वस्तु को पकड़ेंगे कैसे  
सद्भावी सत्यान्वेषी पाठक एवं श्रोता बन्धुओं ! मानव समाज की प्राय: यह इतनी बड़ी कमजोरी है कि वह अपने को पहले ही यह मान बैठता है कि वे लोग महापुरुष थे । महानुभाव थे । प्राफेट एवं पैगम्बर थे । रसूल थे । तो आप बन्धुओं से यहाँ पर मैं सिर्फ इतना ही बताना चाहूँगा कि वे लोग एक साधारण मनुष्य थे, बिल्कुल  साधारण, शायद आपसे भी साधारण, परन्तु हुआ क्या कि परमप्रभु-यहोवा-परमेश्वर-खुदा की कृपा विशेष या विशेष मेहरबानी, विशेष रहम या विशेष दया। तो आप बन्धुओं से हम इतना ही पूछना चाहेंगे-आज क्या परमप्रभु या यहोवा या परमेश्वर या खुदा नहीं हैं; आज क्या उनके पास कृपा विशेष या मेहरबानी या रहम या दया नहीं है; आज वो किसी को नहीं देंगे; तो ऐसी बात कदापि नहीं । जो परमप्रभु या यहोवा या परमेश्वर या खुदा तब थे, वे अब भी हैं; उनके पास जो सब तब था, वह सब अब भी है; जो वे तब सबको देते थे, वो अब भी सबको दे रहे हैं तथा आगे भी देते रहेंगे, मात्र आवश्यकता है आज-अब वैसा ही सत्पात्र-सुपात्र बनकर वह लेने की । परमप्रभु का दरवार तो सदा ही खुला रहा, खुला है और खुला रहेगा, मात्र आवश्यकता है, उस एक ही, एकमात्र एक ही, एक मात्र उस एक ही परमप्रभु या यहोवा या परमेश्वर या खुदा की  भक्ति-उपासना, पूजा-बन्दना करने की । अनन्य भक्ति-भाव से; अनन्य सेवा-भाव से; अनन्य प्रेम भाव से; उसकी भक्ति-उपासना, पूजा-बन्दना में किसी को भी शरीक नहीं करना है । भक्ति-उपासना, पूजा-बन्दना  एकमात्र उसी 'एक' के लिए ही होनी चाहिए ।
  सद्भावी सत्यान्वेषी पाठक एवं श्रोता बन्धुओं । आप कभी भी हीन नहीं हैं । हीन आपका मात्र भाव है । हम तो यही कहेंगे कि आप अपने भाव को एकमात्र परमप्रभु को समर्पित कर दें, तो वही परमप्रभु यहोवा आपको मूसा की तरह ही रक्षा तथा मूसा की तरह ही व्यवस्था भी करेगा । जिसकी रक्षा मालिक करना चाहे उसे कौन कुछ कर सकता है । फिरऔंन जैसा सुसम्पन्न शक्तिशाली कौम-स्टेट, राज्य  एकमात्र  छोटा सा सामान्य शरीर मूसा का कुछ नहीं बिगाड़ सका, बल्कि बिगाड़ने में स्वयं ही सब तहस-नहस हो गये । मूसा को कोई सहयोगी भी नहीं था, एकमात्र उनका बड़ा भाई  हारुन को छोड़कर । परन्तु  हाँ मूसा को उसका सहारा या सहयोग था जिसके सहारे या सहयोग से सारी सृष्टि का कारोबार हो रहा है । आप सभी मूसा अली की तरह अपने को एकमात्र यहोवा को ही सुपुर्द कर देवें । मूसा को उनके जन्म से ही फिरऔंन बादशाह उनको मार डालने हेतु, समाप्त करा देने हेतु कोई कसर या प्रयत्न बाकी नहीं लगाया, परन्तु क्या कोई उसका कुछ बिगाड़ सकता है, जिसको परमप्रभु यहोवा बचाना चाहे, कदापि नहीं, उसका कुछ भी बिगाड़  सकता । धन्य है परम प्रभु यहोवा, तेरी महिमा धन्य है, तेरी कृपा दृष्टि अपार है, जो फिरऔंन  मूसा को मार-मरवा देना चाहता था मूसा उसी फिरऔंन के घर में लालन-पालन पाये । इससे अधिक बढ़कर परमप्रभु यहोवा की मेहरबानी कृपा क्या देखनी है ? मूसा एक साधारण परिवार में पैदा हुए तथा फिरऔंन के मार देने के डर से मूसा  की माँ ने एक बक्से में मूसा को बन्द करके दरिया में डाल दिया। दरिया की भी क्या हिम्मत कि होने वाले यहोवा के बन्दा को समाप्त कर दे । वह बन्द बक्स फिरऔंन बादशाह के राजमहल के बगल में ही जाकर लगा । धन्य परमप्रभो! आपकी कृपा दृष्टि को धन्य ? धन्य यहोवा प्रभो आपके दया को धन्य कि  दरिया में फेंका गया बालक मूसा अपने कट्टर शत्रु फिरऔंन बादशाह के राजमहल के पास ही जा लगा, जहाँ कि फिरऔंन की नि:सन्तान  बेटी स्नान कर रही थी, फिर क्या था, वही हुआ जो परमप्रभु यहोवा चाहता था, जो उसकी कृपा थीजो उसकी मेहरबानी एवं रहम था। बेटी ने उस सुन्दर बालक को अपना लिया । इतना ही नहीं और भी देखें बेटी द्वारा बालक फिर अपने माँ के पास ही पहुँच गया लालन-पालन के लिए। परमप्रभु यहोवा की यह है कृपा दृष्टि ! यह है रक्षा-व्यवस्था, कि यदि वह बालक दरिया में नहीं डाला गया होता, तो फिर्आैंन बादशाह द्वारा निश्चित ही मार दिया गया होता, परन्तु दरिया में डालने पर भी वह समाप्त नहीं बल्कि उसी फिरऔंन  बादशाह के राजमहल के खर्चे पर, उसी फिरऔंन बादशाह के रक्षण-व्यवस्था में वही मूसा बालक  अपनी ही माँ का लालन-पालन, ममता-प्यार पाने लगा । धन्य हो परम प्रभो-यहोवा तेरी अपने  जनों पर जो कृपा दृष्टि है, वह भी धन्य । हे परमप्रभो यहोवा मुझ अधम-पतित जीव का भी आपकी  कृपा विशेष प्रेरणा से ही आप से ही यही निवेदन, प्रार्थना कर रहा  हूँ कि तेरी अपने जनों पर कृपा दृष्टि ऐसे ही बल्कि इससे भी अच्छी तरह से तेरी रक्षा-व्यवस्था कायम रहे । तेरे अपने जनों को थोड़ा भी कष्ट न महसूस होने पाये । तू अपने जनों को सदा  अपनाये रख । तू कभी  भी अपने जनों को भ्रमित या विक्षुब्ध मत कर । तेरे जन दिनों दिन तेरे में लगन से मगन रहें । ऐसी ही कृपा ही कृपा कर । दया अपने जनों के लिए सदा ही करता रह । अपने जनों की गलतियों को क्षमा कर-माफ कर दे । तू नहीं क्षमा करेगा; तू नहीं माफ करेगा, तो यह तेरा जन-समाज कहाँ जायेगा? कहीं ठिकाना भी तो नहीं है । इसके लिए अपने से अलग ठिकाना की भी व्यवस्था  न कर । यदि इसको सही ठिकाना देना चाहता है तो उसी  स्थान पर शीघ्रातिशीघ्र ठिकाना दे तथा अति तीव्र गति से उसे विश्व का ही नहीं, अपितु सृष्टि का सर्वोत्तम ठिकाना बना दे । प्रभु यही कृपा कर कि हम सदा ही तेरे बने रहें । यही कृपा कर दे कि सब साधन उपलब्ध होने के बावजूद भी हम तुझे भुला न सकें । हमारा एकमात्र  तुम्हारा सत्संग करना और तत्त्वज्ञान देना तथा जीवों को भगवद् भक्ति-सेवा में लगाना-लगाये रखना ही एकमात्र कार्य बना रहे तथा तेरा सदा-सदा के लिए बना रहूँ।
  सद्भावी सत्यान्वेषी पाठक एवं श्रोता बन्धुओं ! ऐसा देखा जाता है कि प्राय: अधिकतर महापुरुष  आत्मा एवं परमात्मा अथवा नूर एवं खुदा या अल्लाहतआला या सोल एवं गॉड के सम्पर्क में आने के पूर्व एक साधारण मनुष्य, एक आम आदमी की तरह हुआ या रहा करते हैं । इतनी ही बात नहीं, अधिकतर तो सामाजिक योग्यता हीन यानी सामाजिक दृष्टि में एक अयोग्य व्यक्ति ही हुआ करते हैं, हनुमान एक बन्दर थे, जो बालि के डर से सुग्रीव के साथ-साथ दर-दर का ठोकर खाता हुआ छिप कर ­ऋष्यमूक पर्वत पर रहा करते थे; परन्तु जैसे ही परमप्रभु के अवतार श्री रामचन्द्र जी महाराज के सम्पर्क में आये तो अनन्य भगवद् सेवा-भक्ति के माध्यम से महावीर, संकट-मोचन आदि नामों से बन्दनीय हो गये, आज श्री राम जी के साथ ही साथ वे भी पूजनीय हो गये। पुन: मूसा ही को लीजिये एक साधारण किस्म का आदमी, शुध्द आवाज भी मुख से नहीं निकल पाती थी, तुतली या हकलाहट भरा आवाज वाला एक बिल्कुल ही सामान्य आदमी जिसका साथ भी कोई  देने वाला नहीं था; परमप्रभु यहोवा से जब दरश-परश हुआ-बात-चीत हुआ और परमप्रभु यहोवा ने मूसा पर अपनी कृपा विशेष या मेहरबानी की तो वही हकलाहट आवाज वाला एक साधारण आदमी मूसा पैगम्बरों में भी प्रमुख श्रेणी का पैगम्बर तथा रसूल भी बना क्योंकि 'तौरात' नामक आसमानी या भगवदीय सद्ग्रन्थ भी मूसा पर अवतरित या नाजिल हुई थी । यीशु और मुहम्मद भी एक अनपढ़ अशिक्षित सामान्य व्यक्ति थे । कबीर तथा कालिदास, सूरदास, तुलसीदास, आद्य शंकराचार्य आदि सभी ही या तो एक सामान्य आदमी-बालक रहे या किसी सामान्य परिवार के ही सदस्य (आदमी) थे, परन्तु आज विश्वस्तरीय सन्त-महात्मा, महापुरुष, प्राफेट, पैगम्बर, विद्वान आदि हो चुके हैं । प्राय: सभी जान-देख-समझ रहे हैं । इन बातों को बताने का खास मकसद यहाँ यही था  कि आप अपने को पहले ही अक्षम, अयोग्य एवं तुच्छ मानकर कमजोर बनते हुए महापुरुष आदि बनने के द्वार (दरवाजा) को ही बन्द कर-करा लेते हैं, जबकि ऐसा कदापि नहीं कहना चाहिए कि हम एक अक्षम प्राणी हैं, महापुरुष नहीं हो सकते; हम एक अयोग्य व्यक्ति हैं, महापुरुष एवं सत्पुरुष आदि  नहीं बन सकते; हम एक तुक्ष मनुष्य हैं, हम कोई महापुरुष या सत्पुरुष नहीं बन सकते; हम एक खूंखार चोर, डाकू, बदमाश हैं, महापुरुष नहीं बन सकते; तो रत्नाकर डाकू ही बाल्मीकि ब्रम्हर्षि हो गया अंगुलीमाल डाकू बुध्द के सम्पर्क से महाभिक्षु या महात्मा हो गया । अजामिल पापी तर गया यानी सामान्य से सामान्य, नीच से नीच, डोम जाति का 'सूपन' भक्त जब तक भोग नहीं लगाया युधिष्ठिर का अश्वमेधयज्ञ ही पूर्ण नहीं हुआ । अर्थात् आप बालक, युवा, वृध्द महानुभावों कोई शरीर छोटी-बड़ी या महापुरुष नहीं हुआ करती; महापुरुष तो आत्मा एवं परमात्मा-यहोवा-गॉड-खुदा का सम्पर्क और उसकी कृपा विशेष या मेहरबानी  से साधारण आदमी भी एक महत्वपूर्ण सत्पुरुष हो जाता है । आप अष्टावक्र को ही देख लेवें आठों अंग का टेढ़ा-मेढ़ा शरीर वाला बालक मात्र अध्यात्म के  सम्पर्क से क्या हो गया था । जनक जी जैसे प्रखर एवं तीव्र बुध्दि वाले राजा को पूर्णत: शरणागत कराते हुए सभी ज्योतिषियों एवं पण्डितों को ही  कारामुक्त कराया।
  सद्भावी सत्यान्वेषी पाठक एवं श्रोता बन्धुओं ! मूसा अपने माँ का लालन-पालन पाकर जब बड़ा हुआ तो उसकी माँ ने बालक मूसा को फिरऔंन की बेटी के पास भेजवा दिया । राजमहल में मूसा  फिरऔंन की बेटी का बेटा बन कर पलता-पोसाता हुआ युवा हुआ।  मूसा इब्री था । एक दिन एक मिश्री एक इब्री को नाहक तंग कर रहा था और निर्ममतापूर्वक मार रहा था, तो मूसा उस मिश्री व्यक्ति को मारकर बालू में ढप दिया । ऐसे ही चलते-चलते एक दिन की बात है कि दो इब्री व्यक्ति आपस में लड़-झगड़ रहे थे, तो उसमें जो अपराधी था, मूसा  ने उससे कहा कि तुम उसको क्यों मार रहे हो ? उस अपराधी इब्री  ने कहा कि तुम कौन होते हो पूछने वाले? तुम कोई हमारा हाकिम हो क्या कि पूछ रहे हो ? तुमको हम पर हाकिम किसने ठहराया है ? उस दिन तुम मिश्री को मार दिये तो क्या सोच रहे हो कि आज मुझको भी मार दोगे ? यह सुन कर मूसा दंग रह गया कि मिश्री को मारने वाली बात लग रहा है कि सब लोग जान गये हैं ? तब तो फिरऔंन को भी पता चल गया होगा । ऐसे ही बात-चीत के दौरान किसी दरबारी से ही मूसा को खबर मिली कि फिरऔंन बादशाह मूसा को मारने-मरवाने की योजना बना रहा है । मूसा यह सुन कर मिश्र से बाहर मिद्यान देश को चला गया । मिद्यान में ही मूसा अपना गुजर-बसर करने लगा। बाइबिल के अनुसार पित्रो नामक एक मिद्यानी के यहाँ उसकी भेड़-बकरियाँ चराता था और उन्हीं के यहाँ रहता था जो बाद में मिद्यानी  पाजक यित्रो ने अपनी सात बेटियों में से एक सिप्पोरा नामक लड़की से मूसा की शादी कर दीपरन्तु कुर्आन के अनुसार मदयन निवासी  हजरतशोपेन की दो बेटियां थीं, जिनमें से आठ वर्ष भेड़-बकरियाँ चराने के नौकरी की शर्त पूरा करने पर मूसा से अपने दो बेटियों में से एक की शादी करने का प्रस्ताव रखा । मूसा से हव्शोएवअली ने यह भी कहा कि आप अगर चाहें तो दस वर्ष भी नौकरी कर सकते हैं, परन्तु दस वर्ष के लिये मैं जोर नहीं मारुँगा । मूसा को वह प्रस्ताव मंजूर हो  गया । एक लड़की की शादी उनके शर्त के अनुसार आठ वर्ष भेड़-बकरियाँ चराकर मूसा ने कर लीतत्पश्चात् अपने परिवार को लेकर मूसा अपने वतन (देश) को लौटना चाहे। लौट ही रहे थे कि रास्ते में एक पहाड़ पड़ा मिला, जो जंगलों से घिरा था । उसी  जंगल पहाड़ से होकर मूसा अपने परिवार के साथ गुजर रहे थे कि जंगल में एक आग जैसी ज्योति दिखाई  दी । मूसा अपने परिवार से कहे कि आप लोग यहीं रहें । उधर झाड़ी में आग दिखायी पड़ रही है, वहीं जा रहा हूँ लाने कि आप लोग उसे तापें क्योंकि ठण्डक काफी है । इस प्रकार परिवार को वही ठहरा कर मूसा आग लाने के लिए उस झाड़ी के तरफ गये तो बड़े ही अचम्भा में पड़ गये कि बात क्या है कि झाड़ी में आग है, मगर झाड़ी जल नहीं रही है । हम अवश्य ही यह देखेंगे कि ऐसा क्यों ?
  सद्भावी सत्यान्वेषी पाठक एवं श्रोता बन्धुओं ! मूसा जैसा भेड़-बकरी चराने वाला नौकर (चरवाहा) जब परमप्रभु यहोवा का विशेष कृपा पात्र हो गया, तो आप क्यों नहीं । 'भेड़-बकरियों को चराने की नौकरी मात्र शादी के लिए करने वाला नौकर मूसा' कहने का अर्थ आप यह न लगायें कि आप मूसा से बड़े हैं। यह अहंकार करने के बजाय यह देखें कि मूसा जैसा आदमी भी यदि परमप्रभु यहोवा का कृपा विशेष का पात्र बनकर एक सफल पैगम्बरी किया तथा उस पर 'तौरात' आकाशी किताब भी नाजिल हुई यानी उतरी। यह सब परमप्रभु यहोवा का ही खेल है । ऐसा कर-करके परमप्रभु यहोवा अपने महिमा को दुनियां वालों के समक्ष दर्शाता है कि मालिक (यहोवा) जो चाहे, सो कर-करा सकता है। वही एकमात्र सर्वज्ञ एवं सर्व समर्थ है । उसके सामने किसी की  भी कुछ भी चल नहीं सकती। इसलिए ऐसे परम कृपालु, परम दयालु, सर्वज्ञ, सर्व समर्थ तथा सबसे बड़ा दयावान-मेहरबान परमप्रभु  यहोवा पर जो विश्वास एवं भरोसा नहीं रखता और ऐसे परमप्रभु का जो अनन्य भक्ति भाव से पूर्णत: समर्पण भाव से समर्पित होता हुआ शरणागत नहीं हो सका, तो उससे अभागा और कौन होगा ? अन्तत: हम तो यही कहेंगे सर्व सामर्थ्य एकमात्र परमप्रभु यहोवा में ही है, इसलिये हमको चाहिये कि अपने को इस फानी खिलकत यानी नाशवान सृष्टि-संसार में न फंसा कर एकमात्र परमप्रभु के अनन्य शरणागत होता हुआ उनके सच्चे मार्ग रूप सत्य-धर्म के संस्थापना एवं प्रचार-प्रसार हेतु अपना तन-मन-धन पूर्णत: समर्पित करता हुआ उसी का; एकमात्र एक उसी का हो जाय। एकमात्र उसी की भक्ति-उपासना-पूजा-आराधना या वन्दना करें। मनुष्य के लिए न तो इससे बड़ा धर्म ही हो सकता है और न तो इससे बड़ा कोई कर्म ही ।  देरी न करें, भगवद्शरणागत हों ।
सद्भावी सत्यान्वेषी बन्धुओं ! मूसा बहुत ही उत्सुकतावश उस आगवाली झाड़ी के पास  पहुँचे । तब तक झाड़ी से आवाज आई कि ऐ  मूसा ! तू इधर मत आ, यह जो तुम देख रहे हो, वह आग नहीं   है । वह 'मैं' तुम्हारा परमप्रभु यहोवा या अल्लाहतआला हूँ। तुम अपने पैर की जूतियां दूर ही निकाल दे क्योंकि यह तुवा पाक की घाटी है और मैं तुम्हारा यहोवा, परमप्रभु अल्लाहतआला हूँ। ऐसी आवाज एक वृक्ष से आयी। इतने पर मूसा ने अपनी ऑंखें बन्द कर ली कि अल्लाहतआला या परमप्रभु यहोवा की ज्योति को देखने की शक्ति-सामर्थ्य  हमारे में नहीं है । यही मूसा द्वारा परम प्रभु यहोवा की ज्योति का प्रथम दर्शन अथवा पहला साक्षात्कार था। इसके बाद फिर मूसा और परमप्रभु यहोवा में आपस में दरश-परश, आमने-सामने बात-चीत होने लगा । पहले ही साक्षात्कार में परमप्रभु यहोवा ने मूसा अली के लाठी में जादुई चमत्कार भर दी तथा उनके दाहिना हाथ में एक विशेष किस्म का चमत्कार भर दिया कि वह तेज युक्त हो गया और मूसा को अपनी लाठी को जमीन पर पटक देने को कहा । मूसा ने अपनी लाठी जमीन पर जैसे ही पटका कि लाठी  सर्प बनकर चलने लगा । पुन: आवाज आयी कि मूसा डर मत अपनी लाठी को पकड़, वह तुझे कुछ करेगा नहीं । आवाज सुनकर मूसा लाठी को पकड़े कि पकड़ते ही सर्प लाठी बन गया। यह सब चमत्कार देख मूसा को बड़ा ही आश्चर्य हुआ तथा वे परमप्रभु पर  पूरे ईमान के साथ विश्वास किया । फिर परमप्रभु यहोवा की आज्ञाओं तथा मूसा द्वारा पूर्ण विश्वसनीयता के साथ उसके पालन का सिलसिला प्रारम्भ हुआ और दुष्ट बादशाह फिरऔंन तथा  मूसा के आपसी बात-व्यवहार, टकराव, चमत्कार आदि-आदि का सिल-सिला प्रारम्भ हो  गया  ।
  सद्भावी सत्यान्वेषी पाठक एवं श्रोता बन्धुओं ! आप लोगों के समक्ष यहाँ पर जो सबसे प्रमुख बात मूसा से सीखने योग्य है, वह यह है कि  कभी भी चमत्कार के माध्यम से परमप्रभु के सत्य-धर्म की संस्थापना तथा उसका प्रचार-प्रसार नहीं हो सकता है और न तो चमत्कार के माध्यम से भगवान्-यहोवा-गॉड-खुदा आदि नामों से उच्चारित होने वाले परमप्रभु  के प्रति समाज का श्रध्दा  एवं विश्वास ही जमाया जा सकता है । परमप्रभु कुछ न कुछ फेर बदल कर-करा कर अपने सत्य-धर्म की महिमा इसके  माध्यम से यहाँ कायम करता है । चमत्कार  से भगवद् धर्म का प्रचार-प्रसार नहीं, यह मूसा की  गाथा से स्पष्ट हो जाता है क्योंकि मूसा पर परमप्रभु ने दस, इतना प्रभावकारी चमत्कार फिरऔंन बादशाह के साथ कराया फिर भी फिरऔंन पर मूसा के चमत्कार का कोई खास प्रभाव नहीं पड़ सका । अन्तत: परमप्रभु को फिरऔंन को सारी फौज सहित जलमग्न कराकर विनाश करना ही पड़ा । फिरऔंन मूसा के चमत्कारों को परमप्रभु की कृपा न मानकर बल्कि एक मूसा पर ही बड़े जादूगर होने का कुछ यकीन या विश्वास कर पाया था । इसलिए सत्य-धर्म के जिज्ञासु बन्धुओं से हम सदा यही निवेदन करेंगे कि चमत्कार से क्षणिक विश्वास एवं आस्था अर्जित किया जा सकता है, धान-जन बटोरा यानी संग्रह किया और अनुयायी बनाया जा सकता है; परन्तु वास्तव में परमप्रभु या भगवान या यहोवा या गॉड या खुदा या परमेश्वर के यथार्थत: सत्य-धर्म का प्रचार-प्रसार नहीं किया जा सकता है । हम परम प्रभु की महिमा को चुनौती देने की स्वप्न के स्वप्न के स्वप्न में भी कल्पना नहीं कर सकते तथा भगवान से सदा यही प्रार्थना भी हमारा है कि आपके प्रति अनन्य भगवद् धर्म-सत्संग के माधयम से सेवा-भाव, अनन्य भगवद् प्रेम भाव यानी सदा सदा के लिए ही अनन्य भगवद् भाव में भगवद् शरणागत अनन्य प्रेम भाव से बने रहें तथा भगवत् कृपा विशेष से सत्संग एवं शंका समाधान-अच्छा से अच्छा तरीका से करते-कराते  रहें । यानी भगवद् धर्म रूप सत्य-धर्म की संस्थापना तथा उसका प्रचार-प्रसार ही हमारा एकमात्र कर्तव्य कर्म बना रहे तथा सदा ही सफलता अच्छी से अच्छी प्रकार से मिलती रहे ।
अन्तत: यह अकाटय सत्य स्वीकार करना ही होगा कि होना वही है जो भगवान्-यहोवा चाहेगा।  फिरऔंन बादशाह जैसी शान-शौकत के राज्य को विनाश के मुख में डालकर मूसा  को स्थापित करना एक मात्र यहोवा प्रभु की विशेष कृपा का ही प्रभाव था । हे परमप्रभो आप जैसे चाहते हैं अपनी महिमा कायम कर-करा ही लेते हैं, आप के इस  सामर्थ्य को तो सभी को स्वीकार करना ही होगा । सब कुछ आप ही के कृपा जैसे चाहें, जिसको चाहें कायम करें, जिसको चाहें उखाड़ फेंके । यह आप ही के वश की बात है। आपके कृपा के सदा आकांक्षी ।  सब कुछ आप परमप्रभु के ही कृपा पर ।
------------ सन्त ज्ञानेश्वर स्वामी सदानन्द जी परमहंस 















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